Book Title: Nyayaratna Sar
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 10
________________ का एक संयुक्त सम्प्रदाय अस्तित्व में आया था। मीमांसा सम्प्रदाय इस काल में, न्याय-वंशेषिक पर संयुक्त ग्रन्थों की मीमांसा के प्रवर्तक है, महर्षि जमिनि । रचना होने लगी थी। इस युग के ग्रन्थों को प्रक- मीमांसा-सूत्रों की रचना, इन्होंने की थी। उसका रण ग्रन्थ कहा जाता है। इस युग के प्रसिद्ध प्रक- नाम है...टादश लक्षणी। इसमें द्वादश अध्याय रण ग्रन्थ है-शिवादित्य की सप्त पदार्थी, भास- हैं। इस पर शबर स्वामी का शाबर भाष्य है। वंश का न्याय सार, केशव मित्र की तर्क भाषा, कुमारिल भट्ट ने इस पर प्रलोक कातिक की रचना लोगाक्षि भास्कर की तर्क कौमुदी, अन्नं भट्ट का की है। प्रभाकर ने भी इस पर विशाल टीका रची तर्क संग्रह और उसकी टोका दीपिका, विश्वनाथ है। मीमांसा परिभाषा, अर्थ संग्रह और मीमांसा पञ्चानन का भाषा परिच्छेद और उसकी विस्तृत न्याय प्रकाश आदि इस परम्परा के प्रकरण ग्रन्थ टीका न्याय सिद्धान्त मुक्तावली आदि । तर्क संग्रह हैं, जिनका अध्ययन मीमांसा दर्शन को समझने के एर न्यायबोधिनी टीका और पदकृत्य टीका इसी लिए आवश्यक है। मीमांसा दर्शन की अपनी संयुक्त सम्प्रदाय प्रसिद्ध अन्य माने जाते हैं। पदार्थ मीमांसा भी है, प्रमाण मीमांसा भी है। न्याय-वैशेषिक वैविक नहीं मीमांसा दर्शन में षट् प्रमाण स्वीकृत हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द अथवा आगम, अर्थापति यह सम्प्रदाय भी वैदिक नहीं है। क्योंकि यह और अनुपलब्धि । वेद अपौरय हैं। शब्द और वेदों को नित्य एवं अपौरुषेय स्वीकार नहीं करता। अर्थ का नित्य सम्बन्ध है | प्रमाणों में आगम प्रमाण इसके अनुसार वेद, ईश्वर की वाणी हैं । इसके मत अथवा शन्द प्रमाण का विशेष महत्त्व है। में शब्द अनित्य है । वैदिक ज्ञान में विश्वास होते वेवान्त सम्प्रदाय : हए भी वैदिक यज्ञ एवं होम आदि क्रिया-काण्ड में इसके प्रवर्तक महर्षि व्यास हैं। बेदान्त सूत्र विश्वास नहीं है । शब्द प्रमाण की अपेक्षा, इस में इनका मुख्य ग्रन्थ है। इसके चार अध्याय हैं। अनुमान प्रमाण को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। जबकि वेदमलक सम्प्रदायों में सर्वाधिक महत्व प्रत्येक अध्याय के चार पाद हैं । आचार्य शकर ने इस पर विशालकाय शांकर भाष्य की रचना की शब्द प्रमाण का ही माना गया है। है । अद्वैत वेदान्त का यह जीवानुभूत ग्रन्थ माना भीमांसा-वेदान्त सम्प्रदाय जाता है। वेदान्त सम्प्रदाय के शेष ग्रन्थ, या तो इसका समर्थन करते हैं, या फिर विरोध करते हैं। मीमांसा सम्प्रदाय तथा वेदान्त सम्प्रदाय-दोनों इस के अनुसार अद्वैत है, ब्रह्म । वह सत्य है, ज्ञान वेदमूलक है। वेद ही दोनों का आधार है । लेकिन रूप है, और आनन्दमय है। ब्रह्म सत्य है, और दोनों एक दूसरे के पूरक नहीं, विरोधी हैं । मीमांसा यह दृश्यमान जगत् मिथ्या है। माया ब्रह्म की का जन्म धर्म जिज्ञासा से हुआ है, तथा ब्रह्म शक्ति है। अविद्या के कारण ही जगत् की सत्ता जिज्ञासा से वेदान्त का। वेदगत क्रियाकाण्ड है। इस सम्प्रदाय में एक ही तत्त्व है, और वह है, भीमांसा का आधार है और उसका ज्ञान-काण्ड एक मात्र ब्रह्म । शांकर भाष्य पर अनेक टीकाएँ वेदान्त का। मीमांसा यज्ञ को धर्म मानता है, और हैं, लेकिन भामती, परिमल और कल्पतरु विशेष वेदान्त ब्रह्म जान को । दोनों को स्थिति एवं सत्ता प्रसिद्ध रही हैं। इस परम्परा के अनेक प्रकरण एक-दूसरे के विपरीत है, फिर भी यह तो सत्य है। ग्रन्थ हैं। परन्तु विशेष प्रसिद्ध हैं- वेदान्तसार, कि दोनों का मूल वेद है। अतः यथार्थ अर्थ में, वेदान्त परिभाषा, अद्वैत सिद्धि और वेदान्त दोनों वेदमूलक सम्प्रदाय हैं। मुक्तावली।

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