Book Title: Nyayaratna Sar Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore View full book textPage 8
________________ समाहित होते हैं। इस युग के प्रसिद्ध आचार्य है- आदि। जैन ताकिकों में प्रमाण के दो भेद किये भद्रबाहु । संघदास गणि, जिनदास महत्तर, शीलांक हैं-प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष के दो भेदएवं मलवगिरि आदि । दर्शन-युग बाचक उमा- सांव्यवहारिक और पारमार्थिक । पहले के छह भेद स्वाति से प्रारम्भ होता है। उन्होंने षड्द्रव्य, पञ्च और दूसरे के दो भेद-सकल एवं विकल 1 परोक्ष अस्तिकाय, सप्ततत्व और नवपदार्थों का नूतन शैली के पांच भेद हैं-स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान से प्रतिपादन किया था । इस युग के प्रसिद्ध आचार्य और आगम । प्रमाण विभाजन की जैनाचार्यों की हैं- वाचक उमास्वाति, आचार्य कुन्दकुन्द और यह अपनी मौलिक सूझ है। प्रमाण के विषय में नेमिचन्द्र सूरि। अनेकान्त व्यवस्था युग, जैन आगे विशेष लिखा जायेगा । यहाँ संक्षिप्त परिचय साहित्य के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं चिर दिया है। स्मरणीय है। क्योंकि बौद्धों का शून्यवाद तथा सांख्ययोग सम्प्रदाय विज्ञानवाद, वेदान्त का अद्वैतवाद तथा मायावाद, वैदिक दर्शन के षट्-सम्प्रदाय माने जाते हैंसांख्य का प्रतीकृतिवाद, मीमांसा का अपौरुषेयवाद सांख्य-योग, म्याय-वैशेषिक और मीमांसा-वेदान्त । और न्याय-वैशेषिक का आरम्भ एवं परमाणुवाद- लेकिन सांख्य और योग से बंदों का सीधा सम्बन्ध परस्पर द्वन्द्व युद्ध कर रहे थे । उसे मिटाने के लिए नहीं है। सांख्य दर्शन में हिंसामूलक वैदिक धर्म अनेकान्त दृष्टि और स्याद्वाद की युगानुकुल व्याख्या का विरोध किया गया है। योग का सीधा सम्बन्ध आवश्यक थी। इस कार्य को किया-मापाथ शरीर और चितवत्तियों से है। योग के दो भेद सिद्धसेन दिवाकर ने तथा आचार्य समन्तभद्र ने। द्र ना हैं-गजयोग और हठयोग । अतः दोनों दर्शनों सिद्धसेन का सन्मति तर्क और समन्तभद्र की का सम्बन्ध वेदों से नहीं है । इनका सम्बन्ध श्रमण आप्त-मीमांसा-इस द्वन्द्वात्मक युग के प्रतिनिधि परम्परा से अधिक है। क्योंकि दोनों ही अहिंसा अन्य माने जाते हैं। धर्म में पूरा-पूरा विश्वास रखते हैं। योग दर्शन में, प्रमाण युग अथवा तर्क युग यम और नियमों का पालन आवश्यक ही नहीं, इस युग में प्रमेय की नहीं, प्रमाण की चर्चा अनिवार्य भी माना गया है। पांच यमों में पहला अधिक गम्भीर एवं व्यापक हो चुकी थी । नैयायिक यम अहिंसा माना गया है। और बौद्ध परस्पर घात-प्रतिघात कर रहे थे । एक कपिल का साल्य दूसरे पर आरोप कर रहे थे । एक दूसरे का खण्डन सांस्य दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल हैं। इस कर रहे थे। जैन दार्शनिक कब तक तटस्थ रहते ? दर्शन में पच्चीस तत्व माने गये हैं। मूल में तो दो उन्हें अपने सिद्धान्तों की रक्षा करते हुए, नैयायिक ही तत्व है-प्रकृति और पुरुष । दोनों का संयोग और बौद्धों का खण्डन भी करना पड़ा । इस युग के संसार है, और वियोग है अपवर्ग अर्थात् मोक्ष । प्रसिद्ध आचार्य थे-सिद्धसेन दिवाकर, बादिदेव दोनों के भेदविज्ञान से सांसारिक बन्धन कट जाते सरि, आचार्य हेमचन्द्र तथा उपाध्याय यशोविजय, हैं 1 इस दर्शन में शान की प्रधानता है। सांख्य में अकलंक भट्ट, माणक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र और धर्म प्रमाण तीन हैं-- प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द । प्रसिद्ध भूषण आदि ! जैन न्याय के प्रसिद्ध ग्रन्थ है-न्याया- आचार्य हैं- कपिल, आसुरि, पंचशिख और ईश्वरवतार, प्रमाण-नयतत्त्वालंकार, प्रमाण मीमांसा, कृष्ण । इस सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं-सांस्य तथा जैन तक भाषा, और न्याय विनिश्चय, परीक्षा सूत्र, सांस्य प्रवचन भाष्य, सांख्य कारिका और उस मुख, प्रमेयकमल मार्तण्ड तथा न्याय दीपिका पर सांख्य तत्व कौमुदी । सांख्य ने योग दर्शन की ( १७ )Page Navigation
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