________________
नृत्यरत्नकोश
राजस्थानके एक महान् नृपतिकी अनुपम साहित्यिक कृति होनेके कारण, इस ग्रन्थराजके प्रकाशनका महत् कार्य 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा करनेका हमने आयोजन किया है । इस ग्रन्थका प्रारंभिक अंशात्मक कुछ भाग 'पाठ्य रत्नकोश के नामसे बीकानेरके सुप्रसिद्ध अनूप पुस्तकालयके तत्त्वावधानमें प्रकट किया गया थापर साधनाभाव से आगेका काम स्थगित कर दिया गया ।
*
I
प्रस्तुत 'नृत्यरत्नकोश' की एक प्राचीन पोथी बडोदांके 'गायकवाड प्राच्य विद्यामन्दिर' के ग्रन्थ संग्रह में, प्राध्यापक श्री रसिकलालजी परीखके देखनेमें आई जिसके बारेमें उनने मुझसे जिक्र किया। सुश्री डॉ० प्रियबाला शाहा, जो उन दिनों प्राध्यापक परीखजीके समीप नृत्यकला विषयक साहित्यका विशेष अवलोकन एवं अनुसन्धान कार्य कर रही थीं, बडोदा जा कर वह पोथी ले आईं और मुझे दिखाई । पोथीका दर्शनमात्र करते ही मुझे प्रन्थकी विशिष्टता प्रतीत हो गई और तुरन्त मैंने श्री परीखजी तथा सुश्री प्रियबालाको इसका संपादन कार्य करनेकी प्रेरणा दी और राजस्थान पुरातन प्रन्थमाला द्वारा इसको प्रकाशित करनेकी योजना की । खोज करने पर ज्ञात हुआ कि इस ग्रन्थकी दो अन्य प्राचीन प्रतियां बीकानेर के अनूप पुस्तकालय में सुरक्षित हैं । पर वह पुस्तकालय, बीकानेर महाराजके निजी अधिकारमें होनेसे उनकी प्राप्तिकी समस्या हमारे सम्मुख उपस्थित हुई । प्रसंगवश स्वर्गवासी भारतीय लोकसभा अध्यक्ष माननीय श्री मावलंकरजीसे जिक्र किया, तो उनने बीकानेर महाराजको अपना निजी पत्र भेज कर हमारे लिये उक्त मूल्यवान् पोथियोंकी प्राप्ति सुलभ कर दी ।
इन पोथियोंके आधारसे, प्रेस कॉपी तैयार होने पर अहमदाबादके ही एक प्रेस में मुद्रणकार्य प्रारंभ कराया गया । कुछ समय बाद सुश्री डॉ. प्रियबाला, अपने अध्ययनमें विशेष प्रगति करनेकी दृष्टिसे, फ्रान्स में पारिस- युनिवर्सिटीमें प्रविष्ट होने चली गईं । प्रा० श्री परीखजी भी, गुजरात विद्या सभा अन्तर्गत उच्च अध्ययन एवं संशोधन कार्यकारी भो० जे० विद्या मन्दिरकी नाना प्रकारकी प्रवृत्तियों में अत्यधिक व्यस्त रहनेके कारण, इस ग्रन्थका मुद्रणकार्य प्रायः ४ वर्ष तक स्थगित सा ही रहा । सुश्री डॉ० प्रियबालाके विदेशसे वापस आने पर, मुद्रणका कार्य फिर हाथमें लिया गया । पर अहमदाबादके जिस प्रेसमें प्रथम यह कार्य प्रारंभ किया गया था उसका काम संतोष जनक न होनेसे एवं प्रेसकी स्थिति भी अन्याधीन हो जानेसे, बंबईके सुप्रसिद्ध निर्णय सागर प्रेसमें इस मुद्रणका प्रबन्ध किया गया ।
ग्रन्थका वर्ण्य विषय एक प्रकारसे सर्वथा पारिभाषात्मक हो कर गीत-नृत्यादि कलाविशेषज्ञके सु-अभ्यस्त तथा स्वानुभवप्राप्त ज्ञानसे विशिष्ट संबन्ध रखता है | अतः इसका संपादन कार्य ही विद्वान् समुचित रूपसे कर सकता है जिसका साहित्यिक अध्ययन एवं प्रायोगिक अनुभव - दोनों ही यथेष्ट प्रमाणमें हों । प्रस्तुत ग्रन्थके संपादक