Book Title: Niyamsara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ (अनुष्टुभ् ) पञ्चास्तिकायषड्द्द्रव्यसप्ततत्त्वनवार्थकाः । प्रोक्ता: सूत्रकृता पूर्वं प्रत्याख्यानादि सत्क्रियाः ।।७।। अलमलमतिविस्तरेण । स्वस्ति साक्षादस्मै विवरणाय । नियमसार पाँचवें-छठवें छन्दों में यह कहा जा रहा है कि नियमसार की टीका लिखनेवाले मन्दबुद्धिवाले हम कौन होते हैं ? यद्यपि यह बात हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं; तथापि इस समय हमारा मन इस परमागम के सार की रुचि से इतना पुष्ट हो रहा है कि वह मानता ही नहीं है। इसप्रकार हम देखते हैं कि हमारी रुचि ही इस ग्रंथ की टीका करने को हमें बाध्य कर रही है । उक्त प्रश्न का सीधा-सच्चा उत्तर यही है कि यद्यपि मैंने इस टीका का प्रणयन अपनी रुचि को पुष्ट करने के लिए किया है अथवा यह टीका मेरी परिपुष्ट आध्यात्मिक रुचि का ही परिणाम है; तथापि इससे मेरी आत्मशुद्धि के साथ-साथ भव्यों का कल्याण भी तो होगा ही । इसप्रकार यहाँ कर्तृत्वबुद्धि का निषेध करते हुए भी इससे स्व-पर को होनेवाले लाभ का भी ज्ञान करा दिया गया है। टीकाकार मुनिराज कहते हैं कि भले ही यह टीका मेरी पुष्ट रुचि का परिणाम हो, पर इससे मुझे व अन्य लोगों को लाभ होगा ही । तात्पर्य यह है कि यह स्व-पर हितकारी तात्पर्यवृत्ति टीका इस ग्रंथराज नियमसार की आध्यात्मिक विषयवस्तु से पुष्ट हुई मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव की रुचि का ही परिणाम है, कार्य है। इसप्रकार हम देखते हैं कि उक्त छन्दों में मात्र यही कहा गया है कि गणधर और श्रुतधरों से प्रणीत इस परमागम पर टीका लिखना मेरे पद्मप्रभमलधारिदेव जैसे मंदबुद्धियों का काम नहीं है; तथापि नियमसार में प्रतिपादित अध्यात्म की परिपुष्ट रुचि ही यह कार्य करने के लिए मुझे प्रेरित कर रही है ।। ५-६ ।। अपनी लघुता प्रकट करने के उपरान्त अब टीकाकार पद्मप्रभमलधारिदेव इस सातवें छन्द में इस ग्रन्थ में प्रतिपादित विषयवस्तु की चर्चा करते हैं, जो इसप्रकार हैं ह्न (दोहा) सात तत्त्व छह द्रव्य अर नवार्थ प्रत्याख्यान | पाँचों अस्तीकाय का किया गया व्याख्यान ॥७॥ इस ग्रन्थ में प्रत्याख्यानादि सत्क्रिया का वर्णन करने के पूर्व गाथा सूत्रकर्ता आचार्यदेव द्वारा पाँच अस्तिकाय, छह द्रव्य, सात तत्त्व और नव पदार्थों का निरूपण किया गया है। इसप्रकार इस छन्द में नियमसार ग्रन्थ में समागत विषयवस्तु का विवरण संक्षेप में प्रस्तुत कर दिया गया है। एक प्रकार से यह छन्द इस ग्रन्थ का सूचीपत्र ही है ।। ७ ।।

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