Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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विषय
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पृष्ठ संख्या 7. दुष्ट निग्रह, सरलता से हानि, धर्माध्यक्ष का राजसभा में कर्त्तव्य, कलह के बीज व प्राणों के साथ आर्थिक क्षति का कारण
517 8. वाद-विवाद में ब्राह्मण आदि के योग्य शपथ 9. क्षणिक वस्तुएँ, वेश्या त्याग, परिग्रह से हानि, दृष्टान्त से समर्थन, मूर्ख का आग्रह 10. मूर्ख के प्रति विवेकी का कर्तव्य, मूर्ख को समझाने से हानि व निर्गुण वस्तु
522 29. पाइगुण्य - समुद्देशः
525 से 549 1. शम व उद्योग का परिणाम, लक्षण, भाग्य व पुरूषार्थ विवेचन
525 2. धर्म का परिणाम एवं धार्मिक राजा
529 3. राज कर्तव्य, उदासीन, मध्यस्थ, विजिगीषु, अरि का लक्षण 4. पार्णािग्राह, आसार व अन्तर्द्धि का लक्षण
532 युद्ध करने योग्य शत्रु, उसके प्रति राजकर्तव्य, शत्रुओं के भेद 6. शत्रुता-मित्रता का कारण व मन्त्र शक्ति, प्रभु शक्ति और उत्साह शक्ति का कथन व उक्त शक्तित्रय की अधिकता से विजयी की श्रेष्ठता
534 पाडगुण्य सन्धि-विग्रहादि का निरूपण
535 सन्धि-विग्रह आदि के त्रिगत में मिहिरनुमा करीब
536 शक्तिहीन व चञ्चल के आश्रय से हानि, स्वाभिमानी का कर्तव्य, प्रयोजनवश विजिगीषु का कर्तव्य, राजकीय कार्य व द्वैधीभाव
537 10. दो बलिष्ठ विजिगीषुओं के मध्यवर्ती शत्रु, सीमाधिप्रत विजिगीषु का कर्तव्य भूमिफल, भूमि देने से हानि, चक्रवर्ती होने का कारण तथा वीरता से लाभ
539 11. सामादि चार उपाय, सामनीति का भेदपूर्वक लक्षण, आत्मोघ सन्धान रूप साम नीति का स्वरूप दान, भेद और.दण्डनीति का स्वरूप
540 12. दृष्टान्त द्वारा स्पष्टीकरण एवं शत्रु के निकट सम्बन्धी गृह प्रवेश से हानि
542 13.. उत्तमलाभ, भूमि लाभ की श्रेष्ठता, मैत्री द्योतक शत्रु के प्रति कर्त्तव्य
542 14. विजिगीषु की निन्दा का कारण, शत्रु चेष्टा ज्ञात करने का उणय, शत्रु निग्रह
के उपरान्त विजयी का कर्तव्य, प्रतिद्वन्दी के विश्वास के साधन, चढाई न करने का अवसर 15. विजयेच्छु का सर्वोत्तम लाभ, अपराधियों के प्रति क्षमा से हानि 16. शत्रु निग्रह से लाभ, नैतिक पुरुष का कर्तव्य, अग्रेसर होने से हानि 17. दूषित राजसभा, प्राप्त धन के विषय में, व धनार्जन का उपाय
546 18. दण्डनीति का निर्णय, प्रशस्तभूमि, राक्षसीवृत्ति वाले पर प्रेमी राजा, आज्ञापालन
547 19. राजा द्वारा ग्राह्य व दूषित धन, तथा धन प्राप्ति 30 युद्ध समुद्देश्य
550 से 571 1. मंत्री व मित्र का दोष, भूमि रक्षार्थ कर्तव्य, शस्त्र युद्ध का अवसर
550 2. बुद्धि युद्ध व बुद्धि युद्ध का माहात्म्य
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