Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ २२ नियुक्तिपंचक पायी है। गाधाओं तथा पाठ का बहुत अंतर मिलता है। इसमें ८४ आगमों के संबंध में उल्लेख है अतः विद्वान लोग इसे परवती एवं अगर मानते हैं। सरदारशहर के गधैया उस्तलिखित भंडार में महेशनियुक्ति की प्रति भी मिलती है किन्तु यह खोज का विषय है कि यह किस ग्रंथ पर कब और किसके द्वारा लिखी गई इन निक्तियों के अतिरिक्त गोविंद आचार्यकृत गोविंदनियुक्ति का उल्लेख भी अनेक स्थलों पर मिलता है। गोविंदनियुक्ति में उन्होंने एकेन्द्रिय जीवों में जीवत्व-सिद्धि का प्रयत्न किया है क्योंकि अप्काय में जीवत्व सिद्धि के प्रसंग में आचारांग चूर्णि ने उल्लेख मिलता है कि 'जं च निजुत्तीए आउक्कायजीवलक्खणं जं च अज्जगोविंदेहिं भणियं गाहा। इस उद्धरण से स्पष्ट है कि उन्होंने आचारांग के प्रथम अध्ययन के आधार पर निर्मुक्ति लिखी होगी । आचार्य भद्रबाहु द्वारा उल्लिखित नियुक्तियों के अतिरिक्त अन्य नियुक्तियों की निश्चित संख्या के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तियों में कुछ नियुक्तियां स्वतंत्र रूप से मिलती है, जैसे- आधारांग, सूत्रकृतांग की नियुक्तियां। कुछ नियुक्तियों के आंशिक अंश पर छोटे भाष्य मिलते हैं, जैसे-पर दोनों का स्वतंत्र दशवैकालिक और उत्तराध्ययन की नियुक्ति । कुछ नियुक्तियों पर बृहद् भाषा अस्तित्व मिलता है, जैसे- आवश्यक नियुक्ति, पिंड नियुक्ति ओधनियुक्ति आदि। कुछ नियुक्तिया ऐसी हैं, जो भाग्य के साथ मिलकर एक ग्रंथ रूप हो गयी हैं, जिनको आज पृथक करना अत्यंत कठिन है, जैसे-निशीय, व्यवहार, बुहत्कल्प आदि की नियुक्तियां । बृहत्कल्पभाष्य की टीका में आचार्य मलयगिरि इसी बात का उल्लेख करते हैं। निर्युक्ति- रचना का क्रम आवश्यक नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा का क्रम इस रूप में प्रस्तुत किया है? — १. आवश्यक २ दशवैकालिक ३ उत्तराध्ययन ४. आचारांग ५ सूत्रकृतांग ६. दशाश्रुतस्कंध ७. बृहत्कल्प ८. व्यवहार ९. सूर्यप्रज्ञप्ति १०. ऋषिभाषित । पंडित दलसुखभाई मालवणिया का अभिनत है कि भद्रबाहु ने आवश्यक नियुक्ति में जिस क्रम से ग्रंथों की नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है, उसी क्रम से नियुक्तियों की रचना हुई है। इस कथन की पुष्टि में कुछ हेतु प्रस्तुत किए जा सकते हैं.. १ आजारांगनियुक्ति गा. १७७ में 'लोगो भणिओ' का उल्लेख है। इससे आवश्यक नियुक्ति (गा. १०५७, १०५८) में चतुर्विंशतिस्तव के लोगस्स पाठ की व्याख्या की ओर संकेत है। २. ' आयारे अंगम् य पुब्बुद्दिट्टो उल्लेख आचारांग निर्मुक्ति (गा. ५ ) में है । दशवैकालिक के १५५०३ वृधा ५४३ १४५२ मा ४२० । २. नि ३ पृ. २६०० ३ बृभापीटी पृ २ सूत्ररपर्शिकाने युक्तिर्भाष्य को ग्रंथो जातः । ४. अवनि ८४ ८५ । गणधर " २. १४ । |

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