Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan
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निर्वाण कलिका
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स्तुति, शत्रुञ्जय उपर प्रभु महावीर पासे रचेली प्रभावकचरित्र), रच्या छे तथा श्री भद्रबाहुस्वामीजीए अने श्री वज्रस्वामीजीए उद्यूत करेल श्री शत्रुञ्जयप्रकाशनो संक्षेप एवो शत्रुञ्जय प्रकाश तेपणे रच्यो हतो, तेना उपरथी आ० श्री जिनप्रभसुरिजीए शत्रुञ्जयकल्प रच्यो छे. तरंगलोला कथा उपरथी आ० श्री वीरभद्रसूरिजी ना शिष्य आ० श्री नेमिचन्द्रसूरिजोए तरङ्गवतीसार' ( जैन प० इतिहास ) रच्यो छे. सिवाय पण तेमना बीजा अप्रसिद्ध ग्रन्थो होवानो संभव छे ।
आचार्यश्री महाज्ञानी विद्यासिद्ध महापुरुष हता. तेमनो समय स्पष्ट जण तो नथी तेमना जीवन अंगे प्रभावक चरित्र तपगच्छपट्टावली विगेरे ग्रन्थोमां वर्णन छे. तेमना अंगे निशीथ भाष्य विशेषावश्यभाष्य, कल्पसूत्रचूर्णि वगेरेमा उल्लेख छे, महो० श्री धर्म लागरजी महाराजे, पूज्य श्री पादलिप्तसूरिजी वीर सं० ४६७ वर्षे थया जणान्या छे । अज्ञातकर्ता के गुरुपट्टावलीमा पण तेमज जणान्यु छे ।
श्री पादलिप्तसूरिजीनु जीवन तपगच्छपट्टावली प्रभावक चरित्र आदिमां छे ।
ओनो जन्म अयोध्या- कोशलानगरीमा थयो हतो. त्यांनो राजा विजयब्रह्म हतो. ते नगरीमां फुल्ल नामे शेठ हता, तेमने प्रतिमा नामनी पत्नी हती. शेठाणीए पार्श्वनाथ चैत्यमां वैरोट्या देवानी भक्ति करी, प्रसन्न थयेली देवी पासे पुत्रनी इच्छा कही, देवीए कह्यु - 'नमिविनमिना वंशमां कालकसूरि थया छे. ए विद्याधरगच्छ लब्धिसंपन्न आर्यनागहस्तिसूरि अहीं विद्यमान छे, तेमना पादशौचनु जलपान कर' - प्रतिमा उपाश्रये
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