Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan

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Page 19
________________ ॥ अहम् ।। णमोत्यु णं समणस्स भगवो महावीरस्म । पूज्याचार्यदेव श्रीविजयकारामृतमूरिभ्यो नमः । गुणशेखर वाचनाचार्य श्रीमद्भण्डनगणिवर शिष्यरत्न विद्याधरवंशभूषणमणि-गुणमणिनिधि श्रीमत्पादलिप्ताचार्यकृता निर्वाणकलिका । ॐ नमो वीतरागाय ॥ वर्धमान जिन नत्वा समुहत्य जिनागमात् । नित्यकर्म तथा दीक्षां प्रतिष्ठां च प्रच(ब)महे ॥१॥ प्रतिष्ठापडतिश्चैषा श्रीमत्पालिप्तसूरिणा। भव्यानामुपकाराय स्पष्टार्थाऽऽख्यायनेऽधुना ।।२।। Jan Education Intel IY For Private & Personal Use Only Anelibrary.org

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