Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan

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Page 12
________________ निर्वाणकलिका ॥ १० ॥ Jain Education Int जह जह पएसिणि जाणुअंमि पालितओ भमाडे । तह तह से सिरवेयणा पणस्सइ मुरंडरायस्स ॥ एम गाथा बोली हाथ फेरववाथी राजाना मस्तकनी पीड़ा दूर था. बीजा पण बुद्धि विद्या अने ज्ञान शक्तिना अनेक प्रसंगो थी तेमनु जीवन गम्भीर छे, तेपना उपदेशथी भरुच श्री अश्वावबोध तीर्थनो शातवाहन राजाए जीर्णोद्धार कराव्यो हतो. भरुचना ब्राह्मणोने तमणे वश कर्या हता । तेमनी पासे रससिद्धिनो अर्थी नागार्जुन आवतो. सूरिजी पासे धर्म पाम्यो अने सूरिजीना नामे पादलिप्सपुरपालीताणा बसा. शत्रुञ्जय उपर श्री वीरप्रभुनु मन्दिर बनावी श्री वीरप्रभु आदि जिनबिम्बोनी प्रतिष्ठा मूरि पासे करवी तथा सूरिजी नी मूर्ति पण स्थापी. वीरप्रभुनी वरिजीए 'गाहाजुयल' वे गाथाथी स्तुति करी. जे बे गाथामां सुवर्णसिद्धि तथा आकाशगामिनी विद्या रही छे. आजना जीवो ते जाणी शक्ता नथी. नागार्जुने योगरत्नावली, 'योगरत्नमाला, अनेकाक्षरी आदि ग्रन्थो बनाव्या छे. गुरुमहाराजना मुखथी रैवताचल नीचे दुर्ग पासे नेमिनाथ चरित्र सांभली द्वारकाना महेलो दशार्हमंडप, उग्रसेन भवन, विवाह वेदिका नेमिनाथ पाछा फरवु वगेरे बनाच्या हता. सूरिजीए मानखेदपुरना राजा कृष्णराजने बोध पपाडयो हतो । उपकेश पट्टावली श्री पादलिप्तवरिजी दररोज पांच तीर्थेनी यात्रा ने नमस्कार करता एम लख्यु छे. भगवान महावीरदेवना ११मा पट्टधर श्री आर्यदिनसूरिजीना कालना प्रभावको श्री पादलिप्तसरिजीनो For Private & Personal Use Only ॥०१॥ w.jainelibrary.org

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