Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan

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Page 11
________________ ॥४॥ गइ, पादशौचनु पाणी लइ उभेला साधु पासेथी प्रार्थना करी ते पाणी ते पी गइ, पछी मूरिजी पासे जइ वंदन कयु, गुरुए पण धर्मलाम आप्यो, हसीने बोल्या-तें अमाराथी दस हाथ दूर जलपान कयुछे. तेथी तारो पुत्र दस जोजन दूर वृद्धि पामशे. अने वीजा नवपुत्र थशे। प्रतिमाए खुश थाने का-पहेलो पुत्र हुँ तमने अर्पण करु छ, दर रहे तेमा मने शो लाभ ? तमारी सेवा करे एज उत्तम । मूरिजीए पण कह्य-तारो पुत्र संघनो तथा पृथ्वीनो उद्धार करशे. बुद्धिमां बृहस्पति थशे। अनुक्रमे पुत्र जन्म्यो . प्रतिमाए गुरुना चरणे धर्यो, गुरुए 'अमारा थकी वृद्धि पामो' एम कडं फुल्ल शेठे नागेन्द्र नाम आप्यु. आठ वर्णनो थतां गुरुए लइ पोताना गुरुभाई संग्रामसिंहसूरि पासे दीक्षा करावी. श्री मंडन गणीने सोप्या. एक वर्षमा व्याकरण साहित्यशास्त्र आदि भणी गया. एक कांजी आपनार बाइनु वर्णन करता गुरुए 'पलित्त' का, त्यारे तेणे 'प' नो 'पा' करवा कां एटले गुरुए 'पालिक्त' नाम आप्यु, 'पादलिप्त' आकाशगामिनी विद्यावाला थारो एम कही दस वर्षनी उंमरे आचार्यपदवी आपी पोतानी पाटे स्थाया। श्री पादलिप्तमरिजी वादी हता तथा अनेक विद्या आदिना निधान बन्या. श्रीनिशीषभाष्यमा मुरंड. राजाना मस्तकनी वेदना दूर थवा अंगे नोंध लीधी छे. : Jain Education Inte l For Private & Personal Use Only Mr.jainelibrary.org

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