Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan

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Page 8
________________ निर्वाण कलिका ॥ ६ ॥ Jain Education Int फ्र प्रस्तावना फ्र सम्यग्दर्शनना हेतु स्वरूप जिनभक्तिमां श्री जिनप्रतिमा ए अगत्यनु आलंबन छे. श्री जिनप्रतिमा भराववानी तेमज तेनी अंजनविधि अने प्रतिष्ठा विगेरे करवाना होय छे. ए जिनबिम्ब भराववा आदि अंगेना विधान श्री प्रतिष्ठा कल्पोमां आलेखायां छे, वर्तमानमां पूज्यपाद् महो. श्री सकलचन्द्रजी महाराज विरचित प्रतिष्ठा कल्प द्वारा आ विधि मोटे भागे थाय छे, वर्तमानमां पू० ६० श्री कल्याणविजयजी महाराज साहेबे कल्याणकलिका नी रचना करी छे। अने तेमां प्रतिष्ठा-कल्पो तेम ते अंगेना विधानो विगेरे छणावट पण करी छे. पू० आ० श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजे श्री पंचासकजीमां, पू० आ० श्री रत्नशेखरसूरीश्वरजी महाराजे श्राद्धविधियां तथा पू० उ० श्री मानविजयजी महाराजे श्री धर्मसंग्रहमां जिनबिम्ब विधान प्रतिष्ठा आदि माटे प्रकाश पाथर्या छे । पू० आचार्यदेव श्री देव भद्रसूरि रचित 'कहारयणकोस' मां पण विम्बविधान अंजन तथा प्रतिष्ठा अंगे थोड उपयोगी मार्गदर्शन छे. पूज्य आचार्य भगवन्तो आदि द्वारा तेना अधिकारी विगेरेनो अभ्यास आदि थतो रहे थे. अने जेम खेडान थाय तेम अनुभव बघतो जाय छे. श्री कपिलकेवली भगवंते चंडप्रद्योत राज ने वासक्षेपथी जीवंतस्वामीनी प्रतिमानी प्रतिष्ठा करी आध्यानी वात उदायन राजाना चरित्रमां आवे छे। For Private & Personal Use Only ॥ ६ ॥ www.jainelibrary.org

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