Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani
Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan

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Page 6
________________ अने पू० मुनिश्री निर्वाणकलिका महाजनी देशना श्री प्रेमविजय ॥४॥ भाई संग्रामसिंह पूज्य सद् आ० श्री विजयदानसूरीश्वरजी महाराज, पू० उ० श्री प्रेमविजयजी म०, पू० उपाध्याय श्री रामविजयजी म. अने पू० मुनिश्री भुवनविजयजी म. अपदावादमा विराजमान हता त्यां आव्या अने पूज्यवाद् उपाध्याय भगवन्त श्री रामविजयजी महाराजनी देशना सांभली वैराग्यवंत वन्या अने काका आदिने समजावी दीक्षा लेवा तैयार थया, पाटण मुकामे पू० उपाध्याय भगवंत श्री प्रेमविजयजी म. आदिनी निश्रामा धामधूम पूर्वक दीक्षा थइ अने तेमना वडील संसारीबंधु पू० मुनिश्री भुवनविजयजी म. ना शिष्य मुनिश्री सुदर्शनविजयजी तरीके जाहेर कराया। रत्नत्रयीनी आराधनामा उद्यमवंत थया, धर्मप्रभावनाना कार्यों पण तेमनी छायामा थवा लाग्या, मुम्बई मलाड, रतलाम, उजैन, कराड, भाईखला, गोरेगाम आदि अनेक स्थलोए प्रभावक चातुर्मास करी संघोमां जागृति लाव्या हता। मालवा तथा मध्यप्रदेशपां शिखरबंधी जिनमन्दिरो तथा प्रतिष्ठाओ तेमज छरि पालता संघो मक्षीजी विगेरे तेमना उपदेशथी थया छे।। वि० सं० २०१३ कातक वद ५ ना पोरबंदरमा पू० आ० श्री विजयभुवनसूरीश्वरजी म. ना हस्ते गणिपद प्रदान समहोत्सव थयु अने वांकी कच्छमा तेश्रोश्रीने हाथे वि० सं० २०१५ मा पन्न्यासपद प्रदान धामधूम पूर्वक अपायु' । वि० सं० २०२६ ना पूज्यपाद् परमशासन प्रभावक सुविशाल गच्छाधिपति पू० आचार्यदेवेश श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना वरद हस्ते श्रीपालनगर वालकेश्वर मुम्बई आचार्यपद समये तेमने पण ॥४॥ Jain Education Intel For Private & Personal use only library of

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