Book Title: Naykarnika Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri Publisher: Sanmati Gyanpith View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना जैन दर्शन और 'नयवाद' ___ 'नयवाद' जैन-दर्शन की एक महत्त्वपूर्ण देन है। जैन दर्शन प्रत्येक पदार्थ का निरूपण तथा विवेचन 'नय' को दृष्टि में रखकर ही करता है । "जैन-दर्शन में ऐसा कोई भी सूत्र और अर्थ नहीं है, जो नय से रहित हो“नथि: नएहिं विहुणं सुत्तं अत्यो य जिणमए किंचि ।' -विशेषावश्यकभाष्य, २२७७ जैन-दर्शन की विचार-धारा के अनुसार प्रत्येक वस्तु के अनन्त पक्ष-पहलू हैं । इन पक्षों को जैन-दर्शन की मूल भाषा में 'धर्म' कहते हैं । इस दृष्टि से संसार की प्रत्येक वस्तु अनन्त-धर्मात्मक है - "अनन्तधर्मात्मक वस्तु'' - स्याद्वाद-मंजरी अनन्त-धर्मात्मक वस्तु को यदि कोई एक ही धर्म में सीमित करना चाहे, किसी एक धर्म के द्वारा होने वाले ज्ञान को ही वस्तु का पूर्ण ज्ञान समझ बैठे, तो इससे वस्तु का वास्तविक स्वरूप बुद्धि-गत नहीं हो सकता। कोई भी For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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