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नमस्कार से भी संसारवृद्धि
इस प्रकार नवकार प्राप्त किये बिना कितने ही भव निरर्थक चले गए। नमस्कार प्राप्त किया - नमस्कार किये, परन्तु जिन्हें करने चाहिये थे उन्हें नहीं किये । जो पंच परमेष्ठि नमस्करणीय थे, उन्हें तो नमस्कार किये नहीं, बल्कि दूसरों का अनुसरण किया, और उन्हें अनेक नमस्कार किये अनेक बार नमस्कार किये । क्या हमें नहीं लगता है कि ऐसे नमस्कारों ने भी हमें डुबोया है ? ऐसे नमस्कार करने से हमारे संसार की अभिवृद्धि हुई है, भव बढ़े हैं और हमें बहुत अधिक भटकना पड़ा है । ये बातें सुनकर आश्चर्य होता है कि क्या ऐसा शक्य है? क्या नमस्कार से भी संसार बढता है ? नहीं.. भी कह सकते हैं और हाँ भी कह सकते हैं । यदि ऐसे अयोग्य अनुचित नमस्कार किये जाएँ, तो संसार बढ़ता है, भव परम्परा बढती है, परन्तु योग्य नमस्कार योग्य नमस्करणीय महापुरूषों को ही यदि उचित ढंग से किये जाएँ तो संसार बढ़ने के बजाय घंटता ही हैं । कर्मों की निर्जरा होती है और संसार का अंत भी आता है ।
उभय से सम्यग् साधना :
भूतकाल के भवों में जो कुछ भी हुआ वह तो हुआ, परन्तु भूतकाल के भवों की भूल इस भव में पुनः न हो जाए-इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है। भूतकाल की भूलों से जो हानि हुई है, उसकी प्रतीति आज हमें हो चुकी है । प्रत्यक्ष प्रमाणों से हमें पता लग गया है कि अभी तक तो हम जहाँ के वहाँ हैं, जैसे थे वैसे ही हैं, अभी तक तो हम भटक ही रहे हैं, और पंच परमेष्ठि भगवंतो का अनादर कर ही रहे हैं, अथवा हम संपूर्ण अटल शत प्रतिशत श्रद्धावान न हो पाए हैं । अतः अभी तो हमें कुछ विशेष प्रयत्न, अधिक पुरुषार्थ सच्ची दिशा में करना पड़ेगा।
आज हमें जो भव प्राप्त हुआ हैं, इसमें हमारे अनेक जन्मों का पुण्य बल फलित हुआ हैं, जिसके योग से हमें यह मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है, आर्य क्षेत्र मिला है; वितराग के धर्मवाले कुल-जाति में हमारा जन्म हुआ है और देव-गुरु-धर्म की प्राप्ति हुई है और सद्धर्म श्रवण कर रहे हैं । माता-पिता ने हमें जन्म से ही नवकार महामंत्र सिखाया है, हमकें बचपन से गोद में उठाकर जिनालय में ले जाकर अरिहंत परमात्मा के दर्शन करवाए हैं, दादा का परिचय करवाया है, अपने
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