Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

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Page 468
________________ ग्यारवे- बारहवे नौ ग्रैवेयक में अनुत्तर विमान में ४. विद्युत्कुमार ५. अग्निकुमार ६४,००,००० ८४,००,००० ७२,००,००० ७६,००,००० ७६,००,००० ७६,००,००० ७६,००,००० ७६,००,००० ९६,००,००० स्तनितकुमार ७६,००,००० ७,७२,००,००० ६. द्वीपकुमार ७. उदधिकुमार ८. पाताल लोक में रहे हुए शाश्वत चैत्य तथा शाश्वत जिनबिंब - नाम प्रासाद संख्या प्रत्येक प्रासाद (भुवनपति) में प्रतिमा १. असुरनिकाय १८० २. नागकुमार १८० ३. सुवर्णकुमार १८० १८० .१८० १८० १८० १८० १८० १८० दिक् कुमार ३०० ३१८ ५ ८४,९७,०२३ ९. पवनकुमार १०. शाश्वत जिन चैत्य तथा जिनबिंब - लोक शाश्वतचैत्य स्वर्ग. पाताल अथवा भवनपति मृत्यु लोक (मनुष्य लोकमे) १८० १२० १२० ८४,९७,०२३ ७,७२,००,००० ३.२५९ ५४,००० ३८,१६० ६०० १,५२,९४,४४,७६० कुल बिंब १,१५,२०,००,००० १,५१,२०,००,००० १,२९,६०,००,००० १,३६,८०,००,००० १,३६,८०,००,००० १,३६,८०,००,००० १,३६,८०,००,००० १,३६,८०,००,००० १,७२,८०,००,००० १,३६,८०,००,००० १३,८९,६०,००,००० शाश्वत जनबिंब १,५२,९४,४४,७६० १३,८९,६०,००,००० ३,९१,३२० उपरोक्त तालिकाएं देखने से स्वर्ग-पाताल और मृत्युलोक (मनुष्य-लोक) के सभी शाश्वत जिन चैत्यों तथा शाश्वती जिनप्रतिमाओं - मूर्तिओं की संख्या ख्याल में आएगी । वहाँ देवतागण भी दर्शन-वंदन-पूजन करते हैं । कदाचित् मूर्ति विरोधी न मूर्ति का विरोध करने के लिये चैत्य शब्द का अर्थ बदलकर 'ज्ञान' अर्थ करेंगे 446

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