Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

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Page 477
________________ कहलाते हैं । इन सभी विशेषणों से युक्त परमात्मा वंदनीय - नमस्करणीय बनते हैं। शक्रस्तव में अरिहंत तीर्थंकर परमात्मा का स्वर्ग से जब च्यवन होता है अर्थात् माता की कुक्षि में पधारते हैं अथवा प्रभु का जन्म होता है तब स्वर्ग के अधिपति शक्रेन्द्र महाराजा स्वयं तीर्थंकर परमात्मा की स्तुति करते हैं - स्तुति में अनेक विशेषण भर देते हैं, जो शक्रस्तव अपरनाम नमुत्थुणं सूत्र कहलाता है । जैसे (१) अरिहंत ( २ ) भगवान (३) आदि करनेवाले को । अर्थात् धर्म- तीर्थ की स्थापना करके आदि शुरुआत करते हैं । (४) तीर्थ की स्थापना चतुर्विध संघ की स्थापना करनेवाले को, (५) स्वयं बोध प्राप्त करनेवाले को, (६) पुरुषोत्तम, (७) पुरूषों में सिंह समान, (८) पुरूषों में श्रेष्ठ कमल समान, (९) पुरूषों में श्रेष्ठ गंध हस्ति समान, (१०) लोकोत्तम पुरूष, (११) लोगों का मोक्ष क्षेम करनेवाले नाथ, (१२) लोकहितजनकल्याण करनेवाले, (१३) लोक में प्रदीप समान, (१४) लोक में प्रकाश फैलाने वाले, (१५) अभयदाता, (१६) चक्षुदाता, (१७) मार्गदाता, (१८) शरणदाता, (१९) बोधिबीज देनेवाले, (२०) धर्म के दाता, (२१) धर्म की देशना देनेवाले (२२) धर्म के नायक - स्वामी (२३) धर्म रथ के सारथी, (२४) धर्मरूपी श्रेष्ठ चतुरंग चक्र के धारक, चारगति के नाश रुप धर्मचक्र को धारण करनेवाले, (२५) अप्रतिहत- जिनका कभी क्षय न हो सके ऐसे ज्ञान, दर्शन अर्थात् केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक (२६) जिनकी छद्मस्थावस्था क्षीण हो चुकी है ऐसे, (२७) राग-द्वेषादि को जीतने वाले और जितानेवाले (२८) जो स्वयं संसार समुद्र से पार उतर गए हैं और दूसरों को संसार समुद्र से तिराने वाले हैं (२९) जो स्वयं बुद्ध हैं तथा बोध देने वाले हैं, (३०) जो स्वयं मुक्त हैं और मुक्ति दिलानेवाले है (३१) सर्वज्ञ, (३२) सर्वदर्शी (३३) शिव, अचल, अरुज, अनंत, अक्षय, अव्याबाध, तथा अपुनरावृत्ति स्वरुप मोक्ष पद को प्राप्त किये हुए जिनेश्वरों, भगवान अरिहंतो को नमस्कार हो । इस नमुत्थुत्णं सूत्र में विशेषणों से युक्त जिनेश्वर परमात्मा को नमस्कार किये गए हैं, उनकी स्तवना की गई है । ऐसे विशेषण बडे ही सार्थक हैं, सहेतुक हैं । एक - एक विशेषण का विवेचन बडा ही विशाल है, विस्तार बहुत है । पूज्य हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने 'ललित विस्तरा' नामक नमुत्थुणं सूत्र की विस्तृत टीका स्वरूप ग्रंथ रचना करके इन सभी विशेषणों को सविस्तार स्पष्ट किया है । जिज्ञासुजनों को 'ललित विस्तरा' का विवेचन अवश्य पढना चाहिए । 455

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