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(१) महा माहण - महा मानव - अरिहंत परमात्मा को पुरुषोत्तम कहा है । महान् उच्चतम कक्षा के श्रेष्ठत्तम मानव कहे हैं । 'महा' सर्वश्रेष्ठ के अर्थ में प्रयुक्त है । लोकोत्तम कक्षा के पुरूष के रुप में वर्णन करते हुए ‘चत्तारि लोगुत्तमा' के पाठ में 'अरिहंत लोगुतमा' अरिहंत परमात्मा को लोकोत्तम कक्षा के महापुरुष कहे हैं । इस जगत में तिनो लोक में - समस्त ब्रह्मांड में इनके जैसा दूसरा कोई नहीं है । ये आदर्श महापुरुष हैं, महान लोकोत्तर कक्षा के आप्त पुरूष हैं यथार्थ वक्तां को आप्त पुरूष कहते हैं । सर्वज्ञता और वीतरागता जिनके पास हो वे ही महान से महान कहलाते हैं । (२) महा सार्थवाह - नमस्कार नियुक्ति में तीन विशेषणों का विशेष उल्लेख करते हुए फरमाते हैं कि -
अडवीइ देसिअत्तं, तहेव निज्जामया समुइंमि ।
छक्कायरक्खणट्ठा, महागोवा तेण वुच्चंति ॥ भवसागर रुप अटवी में सार्थवाह समान, भवसमुद्र में महा निर्यामक समान और छह काय जीवों के रक्षक होने से भी परमात्मा को महागोप कहते हैं ।
इस भवसागर में तीर्थंकर भगवंतो द्वारा स्थापित - प्ररूपित तत्त्व के मार्ग पर चलने से जीव मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं अतः तीर्थंकरो का मार्गदर्शकत्व सिद्ध होता है । इस महा संसार सागर में भटकते हुए जीवों के लिये प्रभु सार्थवाह का कार्य करते हैं । जिस प्रकार सार्थवाह रथ को इच्छित स्थान पर पहुंचाता है उसी प्रकार परमात्मा भी भव्यात्माओं को उपदेशादि के द्वारा मोक्ष तक पहुचाते हैं, अतः प्रभु सार्थवाह है। (३) महा निर्यामक - भयंकर संसार समुद्र में जिनेश्वर भगवंत महा निर्यामक हैं | जैसे निर्यामक समुद्र के ज्ञाता होते हैं और समुद्र में डुबते हुए को पार उतारते हैं, उसी प्रकार इस भव संसार रुपी समुद्र में डुबते-भटकते संसारी जीवों को पार उतारते हैं, उनके लिये आकाश दीप तरह सहयोगी बनकर, उपयोगी बनकर उन्हें मोक्ष की ओर मोडते हैं। (४) महागोप - गोप अर्थात् गायों चराने वाला ग्वाला । जिस प्रकार ग्वाला गायों को चराने हेतु ले जाता है और वन्य हिंसक पशुओं से भी उनकी रक्षा करता है, अच्छा चारा - पानी मिले वहां तक सुरक्षित ले जाता है उसी प्रकार जिनेश्वर भगवंत भी षड़काय जीवनिकाय रूपी गायों का जरा-मरण के भय से रक्षण करते हैं और निर्वाण तक पहुंचाते हैं । ऐसे अर्थ में तीर्थंकर भगवंत महागोप अर्थात् परम ग्वाले
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