Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 365
________________ अर्थात आत्मा के कर्मरिपुओं का क्षय करना - नाश करना । सर्वथा क्षय करने अथवा संपूर्णतः नष्ट कर डालने के अर्थ में हन् धातुका प्रयोग हुआ है । इस प्रकार संपूर्णतः यदि कर्म रिपुओं-अरिओं का नाश क्षय होगा तो ही कोई सिद्धबुद्ध-मुक्त बनेगा, अन्यथा कोई सम्भावना ही नहीं है । अतः हन् धातु हनन करने के अर्थ में प्रयुक्त होने पर भी उस में रत्तीभर भी हिंसा की गंध नहीं है अर्थात् अरिहंत शब्द के प्रयोग में तिलभरभी दोष नहीं है । अरिहंत शब्द को बदल कर अन्य किसी भी शब्द को रखने की कदापि भूल न की जाए अन्य कोई भी शब्द अरिहंत शब्द के समान सचोट अभिप्रेत अर्थसूचक न होने के कारण अरिहंत शब्द ही उपयुक्त है। कर्मो को ही रिपु - अरि क्यों कहा ? . रिपु और अरि दोनों का अर्थ है शत्रु, परन्तु शत्रु अर्थात् क्या ? विपरीत भाव में रहने वाला शत्रु कहलाता है । प्रत्यनीकपन अर्थात् जैसा रहना चाहिये उसके बजाय विपरीत भाव से रहना । जो करना चाहिये उसके स्थान पर उल्टे स्वरूप में करना । लोक व्यवहार में जैसे एक शत्रु होता है वह हम से विपरीत रीति से व्यवहार करता है । अपने साथ प्रेम लगन अथवा स्नेह से अनुकूल ढंग से बोले-व्यवहार करे तो वह मित्र कहलाता है, और हम से द्वेष रखे, प्रेम-लगन सर्वथा न रखे तो वह शत्रु कहलाता है । इसलिये शत्रु भाव को विपरीत भाव कहते REATRENDIRALA SEEGENDOMINTER JEGESHEDEISROENDED RRECTEBEDERENBEGSERIES KGEETURDERCESCORCEDEIRUAGE JABAREICATBEDEREREDEBEnawar SEARTMenueness Pleatedmatesters BEHESEREMARCREWatestBEBEDDMMER LEASERECEMENT PREDEEPRECARMERERENERRIERVERBERI JHARMEREDERATIVENESSPATRESS NaDecemes RRENERDEREREMESTERBE STEREDERESHERBETERRORITEREWARWinternा HEESEAR FREDICTOBERGRIDEREHTABLEBRIDEORGE MOBDTEMEDDDDDRESERTAIEENAORE FenneshCHECHAPTERBACHERRESHARE SEBERREERINARORDERRIBECERSEEMEखल PRETRINDERWEumal REMENDED यहि अर्थ यहाँ आत्मा और कर्म के मध्य है । आत्मा जिस स्वस्वरूप में रहना चाहती है, उसे स्व-स्वरूप में न रहने देकर विपरीत भाव से जो आत्मा में रहकर आत्मा के स्वरूप को बिगाड़े वह शत्रु-रिपु अरि कहलाता हैं। __आत्मा का शुद्ध स्वरूप कैसा है? आत्मा एक अखंड स्वतंत्र स्वगुण सम्पन्न सप्रदेशी अस्तिकायवान् चेतना शक्ति सम्पन्न चेतन द्रव्य है। 343

Loading...

Page Navigation
1 ... 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480