Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

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Page 462
________________ है। इसी प्रकार प्रतिमा या मूर्ति जो स्थिर स्वरुप में लगती है, उसी का वाच्य जीवन प्राणवान होता है । वह प्रतिमा किसकी है ? वह भगवान के नाम की वाच्य है, अतः उस मूर्ति से उन भगवान का जीवन दृष्टि समक्ष दृष्टिगोचर हो जाता है । - जिस प्रकार एक फोटो, काष्ठपुतली आदि देखने के साथ ही राग अथवा द्वेष उत्पन्न हो सकता है उसी प्रकार एक वीतराग भाववाली मूर्ति-प्रतिमा को देखकर वीतराग भाव-निष्काम भाव उत्पन्न होने का निमित्त है । काम चेष्टा वाले फोटो . चित्राकृति अथवा पुतले-पुतली देखने पर कामसंज्ञा जागृत हो सकती हो और मन विह्वल बन सकता हो तो फिर राग-द्वेष रहित वीतराग भाव की मूर्ति-प्रतिम के दर्शन से वीतराग भाव, प्रशम-उपशम, निष्काम भाव, निर्वैर भाव क्या जागृत नहीं हो सकता है ? अवश्य प्रगट हो सकता है । प्रतिमा को परमात्मा न कहनेवाले और पत्थर कहनेवाले दया के पत्र हैं । बेचारे कितने अज्ञानी हैं कि उन्हें द्रव्य और पर्याय का भी ज्ञान नहीं है । द्रव्य - गुण - पर्याय ये तीनों ही स्वरुप परमात्मा ने ही फरमाए हैं । 'गुण-पर्यायवद्-द्रव्यं इस सिद्धान्त के आधार पर गुण और पर्यायवाला जो हो उसे ही द्रव्य कहते हैं । द्रव्य से गुण और पर्याय अलग-स्वतंत्र नहीं रहते हैं । वे द्रव्य की ही अवस्थएं हैं और अभिन्न रुप से रहती है । अभिन्न रुप से रहती है तो हम उन्हें अभिन्न रुप से क्यों नहीं देखते ? जो वस्तु जिस स्वरुप में होती है उस वस्तु को उसी स्वप में देखना और मानना ही सम्यक्त्व है । सत्य को सत्य स्वरुप में स्वीकार करना ही सम्यग्दर्शन है । पाषाण जब किसी भी प्रकार की विशिष्ट आकृतिवाला नहीं था तब वह पाषाण ही कहलाता था, परन्तु जब आकार-आकृति स्वरुप में घटित हो जाता है तब उसे पाषाण न कहते हुए प्रतिमा या मूर्ति कहना चाहिए । पाषाण द्रव्य है, परन्तु पर्याय - आकृति जिन-जिनेश्वर की है, अतः सच्चे स्याद्वादि द्रव्य-गुण-पर्याय सभी अवस्थाएं समझकर, देखकर बोलते हैं । पर्याय का लोप करके बोलना कदाग्रह है, मिथ्यात्व है । पर्याय स्वरुपं में तो 'जिन की मूर्ति' कहकर ही व्यवहार करना पडेगा । यही स्थापना निक्षेप है । जिन की मूर्ति की स्थापना करके उसे जिनस्वरुप मानकर उसके दर्शन-वंदन-पूजन किया जाता है । उसके आलंबन से जाप-ध्यानादि की साधना की जाए। प्रतिमा में आत्मदर्शन : प्रभु प्रतिमा एक आलंबन है । सालंबन साधना में यह बडी ही सहायक है। 440

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