Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ धारण करता है । 'संभवामि युगे युगे' के कथनानुसार बार - बार वही जन्म लेता है । यह उनका अवतारवाद है । ईश्वर के स्थान पर अन्य कोई बीच में आकर जन्म नहीं ले सकता । यह संपूर्ण अधिकार एक ही ईश्वर में सुरक्षित है, जब कि जैन धर्म-दर्शन में ईश्वर बनने का अधिकार किसी एक को ही नहीं, बल्कि सभी के लिये खुला रखा गया है । जैन दर्शानानुसार कोई भी आत्मा परमात्मा बन सकती है । इसकी एक संपूर्ण प्रक्रिया है - पद्धति है, साधना का मार्ग है, उस मार्ग पर चलना पड़ता है । उस मार्ग पर चलने वाली कोई भी आत्मा हो, वह कालांतर में परमात्मा बन सकती है । इस प्रकार भूतकाल में अनंत आत्माएँ अरिहंत परमात्मा बनकर मोक्षगामी बनी है । वर्तमान में महाविदेह आदि क्षेत्रों में से मोक्ष में जाती हैं और भविष्य में भी जाएँगी । परमात्मा बनने की प्रक्रिया : जैन दर्शन ने परमात्मा बनने की प्रक्रिया बताई है, क्यों कि जैन दर्शन स्वीकार करता है कि कोई भी आत्मा परमात्मा बन सकती हैं । परमात्मा बनने का अधिकार किसी भी भव्यात्मा को है । Each and Every Soul has right to be God. यह सिद्धान्त जैन दर्शन को मान्य है । इसीलिये इसके धर्म की उपासना में परमात्मा बनने की प्रक्रिया सिखाई गई हैं । और इसी मार्ग पर चलकर आज तक अनेक आत्माएँ परमात्मा बन चुकी हैं । जितने भी परमात्मा बने हैं वे सभी स्वतंत्र आत्माएँ हैं । ___ सांसारिक आत्माएँ भी तीन प्रकार की होती हैं - (१) भव्यात्मा (२) अभव्यात्मा और (३) जातिभव्यात्मा । इन तीनों में से भव्यात्माएँ ही आगे बढ़कर अपना विकास कर सकती हैं और अन्तमें परमात्मा बन सकती है । इनके सिवाय अन्य कोई भी नहीं । कारण स्पष्ट ही है कि योग्यता का अभाव, जैसे एक ही प्रकार के पौधे पर उगने वाले मूंग में मूलभूत स्वभावतः दोनों ही प्रकार के मूंग होते हैं । एक शीघ्र ही सीझ जाते हैं, जब कि दूसरे प्रकार के करडू मूंगे कई दिनों तक आगपर. पानी में उबलते रहने पर भी नहीं सीझते, बस ऐसी ही योग्यता अयोग्यता भव्य अभव्य प्रकार के जीवों में जन्म जात निहित रहती हैं । इस योग्यता के आधार पर भव्यात्मा आगे विकास साध लेती हैं, जबकि अभव्यात्मा परमात्मा बननेकी दिशा में आगे प्रगति नहीं कर पाती और तीसरे प्रकार की जाति भव्य आत्माएँ तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती । 364

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480