Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 458
________________ नामाकृति द्रव्य भावैः पुनतस्त्रिजगज्जनम् । क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नर्हतः समुपास्महे ॥ नाम से, आकृति (स्थापना) से, द्रव्य से, भाव से तीनों ही लोक स्वरूप समस्त जगत को पवित्र करते हुए तथा सर्व क्षेत्र तथा सर्व काल में रहे हुए अरिहंत भगवान की मैं उपासना करता हुँ । नामादि से परमात्मा का स्वरुप समझकर उनकी उपासना करनी है अर्थात् उपासना का स्वरूप व्यापक तथा विस्तृत बन सके । नामादि सर्व प्रकार से परमात्मा का स्वरूप शुद्ध है, पूजनीय हैं, आराध्य है । नाम जिणा जिणनामा - ठवणजिणा पुण जिणिंदपडिमाओ । दव्व जिणा जिणजीवा, भाव जिणा समवसरणत्था ॥ . १. नामजिन - जिनेश्वर परमात्मा का नाम - वे ही नामजिन कहलाते हैं । प्रत्येक तीर्थंकर परमात्मा का कोई न कोई नाम अवश्य होता ही है । नाम का महत्व भी बहुत बड़ा है । नाम के आगे अथवा पीछे नमस्कार जोडकर जाप करने पर वह नाम ही मंत्र बन जाता है । नाम ही परमात्मा का वाच्य बनता है । महावीर, पार्थ, सिमंधर आदि सभी नाम हैं, उन नामों से वाच्य तीर्थंकर परमात्मा है । २. स्थापनाजिन - जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा-मूर्ति को स्थापनाजिन कहते हैं । स्थापना अर्थात् आकृति विशेष । देहधारी तीर्थंकर परमात्मा की भी विशिष्ट प्रकार की आकृति तो अवश्य ही थी । महावीर स्वामी ऐसे थे - उनके रुप, रंग-वर्णं आदि ऐसे थे । अवगाहना - ऊंचाई सात हाथ थी, आदि सब आकृति खूप में गिना जाता हैं । भगवान जीवित थे उस काल की भी मूर्तियां भी मिलती हैं | फोटो, चित्र आदि भी स्थापना निक्षेप में गिने जाते हैं । इस स्थापना को स्थापन करके दर्शन-पूजनादि भक्ति की जाती है। पूर्व में जैसा कि उल्लेख हो चुका है कि जिनेश्वर प्रभु की जो प्रतिमा-मूर्ति बनाई गई है, वह मूर्ति ऐसी पद्मासनस्थ अथवा कायोत्सर्ग मुद्रावाली ही क्यों बनाई गई है ? इन दो मुद्रा से अतिरिक्त अन्य किसी भी मुद्रावाली क्यों नहीं बनाई गई? महावीर आदि तीर्थंकरों के जीवन की ऐसी अनेक मुद्राएं रही होगी, जैसे कि बैठी हुई, सोयी हुई, निद्रा करती हुई, खाती हुई, पीती हुई आदि अनेक आकार-प्रकार की मूर्ति क्यों नहीं बनाई ? इसके पीछे क्या रहस्य छीपा होगा ? जिस प्रकार राम की मूर्ति खडी, तीर-धनुष सहित तथा साथ में सीताजी तो अवश्य ही होते हैं, जिस प्रकार कृष्ण की मूर्ति सुदर्शन चक्र तथा साथ में राधा तो अनिवार्य रुप से होती है 436

Loading...

Page Navigation
1 ... 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480