Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 411
________________ बाँधते हैं। (१२) ब्रह्मचर्य पद की आराधना करके चन्द्रवर्मा तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं । (१३) क्रिया पद की आराधना करके हरिवाहन तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं । (१४) तप पद की आराधना करके कनककेतु राजा तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं। (१५) सुपात्रदान पद (गोयम पद) की आराधना करके हरिवाहन राजा तीर्थंकर नामकर्म बाँधते हैं। (१६) वैयावच्च पद (जिन पद) की आराधना करके जिमितकेतु तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं। (१७) संयम पद की आराधना करके पुरंदर राजा तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं । (१८) अभिनव ज्ञानपद की आराधना करके सागरचन्द्र तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं। (१९) श्रुतपद की आराधना करके रत्नचूड तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं। (२०) तीर्थ पद की आराधना करके मेरु प्रभुसूरि तीर्थंकर नाम कर्म बाँधते हैं। इस प्रकार २० पदों में से एक - एक पद की आराधना करने वाले ये बीस महात्मागण थे इन्होंने एक - एक पद की आराधना की तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित किया और महाविदेहक्षेत्र में तीर्थंकर बनकर मोक्ष में गए । तीर्थंकर नामकर्म : जैन दर्शन के कर्म शास्त्र में तीर्थंकर नाम कर्म को भी एक प्रकार का शुभ उच्च कोटि का पुण्य कर्म माना गया है | आठ कर्मों में ४ घाति कर्म है और ४ अघाति कर्म है । घाति कर्मों में एक भी शुभ पुण्य प्रकृति नहीं है, जब कि अघाति कर्मों में शुभ पुण्य और अशुभ पाप की दोनों प्रकार की प्रकृतियाँ हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर ४२ प्रकृतियाँ पुण्य की हैं और अघाति में ३७ प्रकृतियाँ पाप की अशुभ की हैं । घाति की भी ४५ का योग करने पर ४५+३७ = ८२ प्रकृतियाँ पाप की अशुभ हैं। नाम कर्म की १०३ प्रकृतियों में तीर्थकर नामकर्म की एक उत्कृष्ट पुण्य प्रकृति है । यह-प्रकृति तीर्थकर बनने वाली आत्मा को बाँधनी ही पड़ती है, तभी वह तीर्थंकर बन सकती हैं , अन्यथा संभव नहीं है । भावी में तीर्थकर बनने के लिये पूर्व के तीसरे भव में तीर्थंकर नाम कर्म बाँधना ही पड़ता है ऐसा नियम है। जो जीव यह कर्म बाँधता है, वही तीर्थंकर बन सकता है । अन्य अनेक ऐसे होते 389

Loading...

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480