Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

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Page 426
________________ की ज्ञानगंगा बहने लगती है, प्रभु सभी प्रश्नो के उत्तरों देते हैं, इन उत्तरो के संकलन रूप एक अद्भूत जैनेन्द्र व्याकरण ग्रन्थ बन जाता है। इतनी विद्वत्ता देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं। प्रभु सौम्य भाव से संसार में काल निर्गमन करते हैं । युवावस्था में पाणिग्रहणः काल निर्गमन के साथ प्रभु की वय भी बढती है प्रभु युवावस्था में प्रवेश करते हैं। प्रभु महावीर ने यशोदा के साथ अपना संसार चलाया। सांसारिक सुख भोगते हुए प्रभु को एक कन्या रत्न की प्राप्ती हुई थी, जिसका नाम प्रियदर्शना था। उसका जमालि के साथ पाणिग्रहण कराया था । जरूरी नहीं है कि सभी तीर्थंकर शादी करके संसार चलाए। जिनके भोगावली कर्म क्षय हो चुके थे ऐसे स्त्री तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ भगवान ने, तथा श्री नेमिनाथ भगवान ने शादी नहीं की थी कुमारावस्था में ही महाभिनिष्क्रमण करके संसार का त्याग कर दिया था । राज्याभिषेक क्षत्रीयकुल में और वह भी राजकुलमें जन्म पाए हुए तीर्थंकर भगवंतो का कुमारावस्था में ही राज्याभिषेक होता है। पिताजी राजपरिवार एवं समस्त प्रजाजन की साक्षी में प्रभुजी का राज्याभिषेक करवाते हैं । राजा बनकर प्रभु राज्य की धुरा को सम्हालते हैं, राज्य की व्यवस्था करते हैं, राज्य में न्यायतंत्र की स्थापना करते हैं। धर्म का राज्य स्थापित करते हैं । प्रभु की राज्य व्यवस्था में लोग न्याय नीतिमत्ता से जी सकते हैं । जन्म से ही महाज्ञानी-विचक्षण महापुरूष उत्तम प्रकार से शासन चलाते हुए संसार का परित्याग करने का सोचते हैं। प्रभु स्वयं ज्ञानी हैं अतः संसार त्याग करने और संयम स्वीकार करने का अवसर आ चुका है, यह जानकर प्रभु तैयारी करते हैं। . महाभिनिष्क्रमण-दीक्षा ____जिन कल्प के शाश्वत आचारानुसार नवलोकान्तिक देवताओं का आगमन होता है। अपना आचार जानकर राज्यावस्था में राजा के रूप में रहे हुए प्रभु को निवेदन करते हैं- 'भयवं तित्थं पवत्तेह'-हे भगवन्! आप तीर्थ प्रवर्तन करीएँ,। आप संयम ग्रहण करके धर्मतीर्थ की स्थापना करीएँ । यद्यपि प्रभु तो ज्ञानी ही हैं,अतः ऐसा निवेदन करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती है फिर भी नवलोकान्तिक 404

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