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क्या पहले विश्व बनाया और बाद में ईश्वर विश्व व्यापी बना ? या पहले ईश्वर ही व्यापक स्वरुप लेकर अवतरित हुआ और बाद में विश्व बनाया ? यदि मानते हो कि पहले ही व्यापक स्वरुप धारण करके अवतरित हुआ तो तब विश्व ही न था तो फिर व्यापक होने की बात कहाँ से आई? आप उत्तर देंगे कि आकाश में अनंत आकाश तो था ही न ? ठीक है - आकाश को ईश्वर से पहले ही मान लेते है तब तो फिर ईश्वर कृत आकाश नहीं माना जाएगा, क्यों कि ईश्वर के होने के पूर्व ही आकाश तो था, तो फिर ईश्वर ने स्वयं के होने से पूर्व ही आकाश कैसे बनाया होगा ? यह बात संभव ही नहीं है । यदि आकाश के पहले मानते हैं तो ईश्वर का आकाश बनाने का अधिकार ही छिन जाता है और उसके साथ ही उसकी व्यापकता भी सिद्ध नहीं होती । यदि कहते हो कि ईश्वर ने पहले होकर फिर विश्व बनाया तो उसकी व्यापकता मिट जाती है । ईश्वर को बना हुआ या बनता हुआ सिद्ध करते हो तो उसकी नित्यता चली जाती है । तब क्या किया जाए? दूसरी ओर ईश्वर को अशरीरी मानते हो तो विश्वव्यापी कैसे माने ? व्यापक सर्वव्यापी मूर्त होता है या अमूर्त ? अशरीरी ईश्वर अरुपी-अमूर्त हो तो फिर उसका स्वरुप सर्वव्यापी कैसे हो सकता है ? यदि इसे माने तो आकाश में अतिव्याप्ति आ जाती है । तो क्या ईश्वर को आकाश की तरह सर्वव्यापी माने ? अर्थात् क्या जितना आकाश व्यापक है उतना ही ईश्वर भी व्यापक है ? तो आकाश के बाहर तो एक भी पदार्थ नहीं है और यहां ईश्वर द्वारा निर्मित पदार्थों को ईश्वर से भिन्न माने या अभिन्न माने ? जैसे सर्व व्यापी आकाश सर्व पदार्थों का संयोग करता है वह विभु है, आकाश पदार्थ उसी तरह यदि सर्व मूर्त द्रव्य संयोगी के रुप में ईश्वर को भी विभुरुप से व्यापक मानना चाहिये तब तो ईश्वर में आकाशवत् निष्क्रियता - जडता आ जाएगी और ऐसा होगा तो ईश्वर सृष्टि की रचना कैसे कर सकेगा ? तब तो पुनः कर्तृत्वपन चला जाएगा । अथवा यदि ईश्वर
और आकाश दोनों को सद्दश पदार्थ मानोगे तो ईश्वर की सकर्तृकता आकाश में माननी पड़ेगी और तब तो आकाश से भी सृष्टि की उत्पत्ति होती है यह मत स्वीकार करना पड़ेगा । दूसरी ओर ईश्वर में आकाश की तरह निष्क्रियता आ जाएगी तो सृष्टि - रचना का कार्य उसके हाथ से निकल जाएगा । तब क्या किया जाए ? कठिनाई दोनों ओर हैं।
यदि ईश्वर को शरीर से व्यापक मानते हैं तब भी अनेक समस्याएँ सामने आएंगी। क्या जितना विश्व है उतना ही ईश्वर का शरीर है या न्यूनाधिक है ?
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