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उत्थापक हैं और कर्मसत्ता को न मानकर ईश्वर का स्वरूप विकृत कर देने वाले होने से सभी नास्तिक हैं । इस प्रकार अपना अन्य न मानें अतः नास्तिक-यह किसके घर की व्याख्या है ?
पाणिनि की नास्तिक विषयक व्याख्या के अनुसार भी जैन दर्शन नास्तिक सिद्ध नहीं होता, क्यों कि जैन किस वस्तु को नहीं मानते है ? किस अहष्ट वस्तु को नहीं मानते हैं ? किस तत्व को नहीं मानते हैं ? क्या जैन लोक - परलोक को नहीं मानते हैं ? क्या वे आत्मा-परमात्माको नहीं मानते हैं ? क्या वे जगत में अस्तित्व रखने वाले पुण्य - पाप, कर्म-धर्म, स्वर्ग-नरक, बंध-मोक्ष आदि तत्त्वों को नहीं मानते हैं ? भले ही वह दृष्ट हो या अदृष्ट हो - अगर अपना अस्तित्व रखता हैं, जो सतरूप में विद्यमान है तो जैन उसे अवश्य मानते हैं । जैनों के परमेश्वर अरिहंत सर्वज्ञ-अनंतज्ञानी हैं । उन सर्वज्ञ के ज्ञान से परे जगत का एक अंश मात्र भी छूट नहीं सकता और इतना ही नहीं बल्कि इन सर्वज्ञों ने एक-एक वस्तु के अनंतानंत धर्म, द्रव्य-गुण-पर्याय स्वरूप में बताए हैं, उन सभी को स्वीकार करते हुए अनंत धर्मात्मक वस्तु स्वरूप में मानते हैं । अतः सत् पदार्थ विषयक एक भी तत्त्व जैन नहीं मानते-ऐसा कहना नरीअज्ञानता है ।
जैन तो दावे के साथ कह सकते हैं कि जैन दर्शन सर्वज्ञ भाषित जितने तत्त्व मानता हैं, जितने तत्वों को वह पूर्ण सत्य स्वरूप में स्वीकार करता है उतने पूर्ण सत्य स्वरूप में जैनेतर भी स्वीकार नहीं करते हैं और न उतने तत्त्वों को भी स्वीकार करते हैं । उदाहरण के लिये देखे तो पता चलेगा कि जैनेतर दर्शनों में से एक भी दर्शन निगोद के जीवों का अस्तित्त्व और स्वरूप स्वीकार करता है क्या? स्वीकार करने की बात तो छोड़ो परन्तु जानते भी नहीं है कि यह भी क्या हैं ? चलो एकेन्द्रिय पर्याय के पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति सभी में अपने ही जैसी जीवात्मा रही हुई हैं, सभी में जीव हैं, जो प्राणयुक्त प्राणधारी है, उन मे भी सूक्ष्म रूप से वे पांचों ही १४ राजलोक में सर्वत्र व्याप्त हैं । इसी प्रकार विकलेन्द्रिय के जीवों का स्वरूप और चारों ही गतियों के कुल मिलाकर जीवों के ५६३ भेद स्वीकार करने हेतु एक भी दर्शन तैयार नहीं है । इस से भी और आगे बढ़ते हैं तो प्याज, आलू, लहसुन, गाजर, मूली, शकरकंद, अद्रख, नव अंकुरित अंकुर, कोमल फल, नसरहित कूपल, मशरूम, काई - पांचो प्रकार की फंगस आदि वनस्पतियाँ जो साधारण वनस्पतियों के नाम से जानी जाती हैं - उनमें सर्वज्ञोंने एक-एक शरीर में अनंत जीव बताए हैं और यह स्वरूप जानने के कारण
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