Book Title: Naishadhiya Charitam 01 Author(s): Mohandev Pant Publisher: Motilal Banarsidass View full book textPage 7
________________ बदि श्रीहर्ष गौड़देशीय नहीं होते तो गौड़-राज वंश की प्रशंसा में क्यों ग्रन्थ लिखते ? किन्तु हमारे विचार से जब तक उक्त ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो जाता तब तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता / इस ग्रन्थ के आधार पर बंगालियों का श्रीहर्ष को बंगाली कहना उनकी ऐसी ही अटकल समझिये जैसे कालिदास नाम के आगे काली शब्द जुड़ने से उनका कालिदास को कालिकांपासक बंगाल देश का निवासी कहना / डाक्टर साहब अपने मत की पुष्टि हेतु दूसरा तर्क * ह भी देते हैं कि श्रीहर्ष ने दमयन्ती के विवाहोत्सव पर पुर-सुन्दरियों द्वारा हर्ष में की हुई 'उलूलु' ध्वनि का उल्लेख किया है। बंगाल में ही विवाहादि मांगलिक अवसरों पर महिलायें हथेली को गोलाकार करके शंख की तरह हाथ के खोखले में मुँह से फूंक मारकर उलूलु-ध्वनि किया करती हैं। इसका समर्थन उन्हें नारायण को इस टोका से मिला-'विवाहाद्युत्सवे स्त्रीणां धवलादिमङ्गलगोतिविशेषो गौड़देशे 'उललः' इत्युच्यते / सोऽव्यक्तवर्ण उच्चार्यते / स्वदेश-रीतिः कविनोका / किन्तु नारायण की व्याख्या कोई अकाट्य प्रमाण नहीं हो सकती। मल्लिनाथ ने 'उदीच्यानामाचारः' कहकर उत्तर भारत मात्र में यह आचार माना है। तभी तो काश्मीरी पंडित कहे जाने वाले मुरारि ने अपने 'अनर्घराघव' में सीता के विवाह के समय पुर-सुन्दरियों द्वारा की जाने वाली उल्लु-ध्वनि का उल्लेख किया है / 2 उक्त नाटक के टीकाकार रुचिपति ने इस लोकाचार को दक्षिण भारत में माना है 3 / कितने ही अन्य काव्यकारों ने भी अपनी कृतियों के भीतर तत्तत् देशों में इस प्रथा के प्रचलन को उल्लेख कर रखा है, जिनमें से उद्धरणों को देकर हम यहाँ विस्तार में नहीं जाना चाहेंगे। इसी तरह उक्त डाक्टर महोदय ने विवाहादि के समय नैषध में उल्लिखित 'आलेपन' प्रथा का बंगाल में होने का तर्क भी दिया है। आलेपन गेरू से जमीन लाल करके उसके ऊपर पिष्टोदक ('पीठे' ) से की जाने वाली तरह-तरह की माङ्गलिक चित्रकारी को कहते हैं / इसे अल्पना भी कहते हैं किन्तु यह प्रथा भी बंगाल तक ही सीमित नहीं है, देश-व्यापक है, इसलिए उनका यह तकं मी अनैकान्तिक है / ___ कुछ ऐसे भी विद्वान् हैं, जो श्रीहर्ष की माता के मामल्लदेवी नाम से यह अटकल लगाते हैं कि महिलाओं के ऐसे विचित्र नाम उत्तर मारत में न होकर काश्मीर में हुमा करते हैं उनके अनुसार मम्मट को श्रीहर्ष का मामा बताते हैं / अतः कवि भी काश्मीरी पण्डित रहे होंगे, लेकिन यह भी उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि-जैसे हम श्रीहर्षके व्यक्तिगत जीवन में आगे बताएँगे-श्रीहर्ष यदि काश्मीरी होते, तो जब वे काश्मीर गये थे तो वहां अपने को काश्मीर-नरेश के आगे 'वैदेशिकोऽस्मि' यह न कहते, न काश्मीरी पण्डितों के हाथों उनकी वहां जो दुर्गति बुई, वह होती और नहीं राजा के आगे अपने को काश्मीरी भाषा से अनभिज्ञ कहते / इसलिये कुछ विद्वानों के कथनानुसार वातापि के समीप मामल्लपुर एक कसवा है, जो श्रीहर्षकी माता का जन्म-स्थान था। उसी कसबे के नाम 1. सैवाननेभ्यः पुर-सुन्दरीणामुच्चैरुलूलुध्वनिरुच्चचार / (14.51) / 2. वैदेही-कर-बन्धु-मङ्गलयजुःसक्तं द्विजानां मुखे, नारीणां च कपोलकन्दलतले श्रेयानुलूलु ध्वनिः (3.55) / 3. 'उलउली' इति प्रसिद्धः दक्षिणदेशे विवाहाधवसरे स्त्रीमिरुललुध्वनिः किथवे इत्याचारः /Page Navigation
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