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(३४) हे प्रभो ! तेरी मत्ति, तेरी प्रतिमा आराधक आत्मानों को मनोवांछित वस्तुएँ और उनकी इष्ट फलसिद्धि को प्राप्त कराती है।
(३५) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा पाराधक आत्मा को कर्म की निर्जरा कराती है ।
(३६) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय अक्षत आदि चढ़ाने का कार्य करने वाली आराधक आत्माओं को दान-धर्म का का लाभ दिलाती है।
(३७) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय आराधक का मन विषय-विकारों से रहित होने से उसे शीलधर्म का लाभ दिलाती है।
(३८) हे प्रभो ! तेरी मत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शनपूजन के समय आहारादि का त्याग करने वाली आराधक आत्मानों को तपधर्म का लाभ दिलाती है ।
(३६) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय चैत्यवन्दन करनेवाले तथा स्तुतिस्तवनादि रूप में गुणगान करने वाली आराधक आत्मानों को भावधर्म का पालन कराती है ।
मूत्ति-६
मूत्ति की सिद्धि एवं मत्तिपूजा की प्राचीनता-८१