________________
पूर्व मानने में किसी प्रकार का भी मतभेद नहीं हो सकता है।
पाँच हजार वर्ष पूर्व भी मूर्तिपूजा की प्राचीनता के प्रत्यक्ष प्रमाण रूप इतिहास 'शिव-पार्वती संवाद' . से जिनेश्वरदेव के मन्दिर-मूत्ति का पता मिलता है। वह 'शिव-पार्वती संवाद' नीचे प्रमाणे है
विश्वकर्मा के मूल श्लोक अर्थ सहित सुमेरुशिखरं दृष्ट्वा, गौरी पृच्छति शङ्करम् । कोऽयं पर्वत इत्येषः, कस्येदं मन्दिरं प्रभो ॥१॥
अर्थ-एक समय पार्वती सुमेरुपर्वत के शिखर को देखकर शंकरजी से पूछने लगी कि-हे प्रभो ! यह सामने विद्यमान कौन सा पर्वत है ? और इसके शिखर पर यह किस देव का मन्दिर है ? ॥१॥
कोऽयं मध्ये पुनर्देवः, पादान्ता का च नायिका । किमिदं चक्रमित्यत्र, तदन्ते को मृगो मृगी ॥२॥
अर्थ-हे नाथ ! इस मन्दिर के मध्य में कौन से देव बिराजमान हैं ? और इनके पाँवों के समीप यह किस नाम की नायिका यानी मुख्य देवी है ? एवं यह
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१४०