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जाने लगा है जिनमन्दिर और । . फल पाता है अट्ठम तप सुन्दर । समय मिला प्रभ - पूजन का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (४) जैसे कदम आगे बढ़ाता है वह ये । उपवास चार का पाता है फल ये। समय मिला प्रभु - भजन का....
श्रो प्रातमा ! ० ॥ (५)
राह चलते ही पाँच उपवास का।। अर्ध राह आते मिलता पन्दर का। समय मिला सुलाभ लेने का....
ओ प्रातमा ! ० ॥ (६) होता दर्शन जब जिनमन्दिर का। पाता फल वह मास उपवास का। समय मिला प्रभ - भेटने का....
श्रो पातमा ! ० ॥ (७) प्राया समीप जब जिनमन्दिर के। फल पाता है छमास उपवास के । समय मिला प्रभु देखने का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (८)
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२१२