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प्रतिमा छत्रीसी सुणो भविप्राणी, हृदये करो विचार जी। पक्ष छोड़ी समकित पाराधो, पामो भव नो पार जी ॥
प्रतिमा० ॥ ३६ ॥
रायसिद्धार्थ वंशभूषण त्रिशलादेवी माय जी , शासननायक तीर्थऊशिया रत्नविजय प्रणमे पाय जी। शालबहोतेर जेष्ठमासे सुदपंचमी गुरुवार जी , गयवर सरणो लीयो तोरो सकल भयो अवतार जी ॥३७॥
॥ इति सम्पूर्णम् ॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७६