Book Title: Murti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 344
________________ सद्वचनामृत D दुषम-काल जिन-बिम्ब जिनागम भवियरणकुं आधारा ! चित्त प्रसन्न रे पूजन फल का ! जिनप्रतिमा जिनवर सम भाखी सूत्रघरणां छे साखी ! प्रभु की पूजा का पुण्यफल सयं पमज्जणे पुण्णं, सहस्सं च विलेवणे । सय साहस्सिया माला, प्रांतं गीवाईए ॥ अर्थ - श्री जिनेश्वर भगवान की मूर्ति प्रतिमा का प्रमार्जन करते हुए सौ गुना पुण्य, बिलेपन करते हुए हजार गुना पुण्य, पुष्प - फूल की माला चढ़ाते हुए लाख गुना पुण्य और गीत गाते तथा वाजिन्त्र बजाते हुए अनंतगुना पुण्य उपार्जन होता है । DOOG जिनदर्शन तथा गुरुवन्दन का अनुपम प्रभाव दर्शनेन जिनेन्द्राणां साधूनां वन्दनेन च । न तिष्ठति चिरं पापं छिद्रहस्ते यथोदकम् ।। मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ३२१

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