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- शेर - दो सहस पैंतालीस ये, वर्ष महा वदी पांचमे । मेदपाटे फतहपुरे, पार्श्वप्रतिष्ठा शुभ दिने । मुझ पर प्रभो ! उपकार करो ॥ मेरे० (१७)
- शेर -- नेमि-लावण्य - दक्षसूरि, - सुशिष्य सुशीलसूरि ए। किया शास्त्रप्रमाण से ही, जिनमूत्ति-स्थापन स्तव ए॥ मेरी भावना सर्व सफल करो ॥ मेरे० ॥ (१८)
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२१०