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योग्य है तथा कल्याण और मंगलकारी ऐसी जिनप्रतिमा के तुल्य उपासना करने लायक हैं । ___ इन महामाननीय दाढ़ाओं की अस्तिता के कारण ही चमरेन्द्र वहाँ पर देव सम्बन्धी विषयभोग भोगने में समर्थ नहीं होता है।
(३७) श्री ज्ञातासूत्र के १६ वें अध्याय में वर्णन है कि-महासती द्रौपदी ने १७ भेद से प्रभु की पूजा की है।
(३८) श्री विपाकसूत्र में सुबाहु आदि ने जिनप्रतिमा पूजी है, ऐसा वर्णन है ।
(३६) श्री रायपसेरणीसूत्र में सूर्याभदेव ने १७ प्रकार से प्रभु की पूजा की है।
(४०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र के तीसरे संवर नामक द्वार में जिन-प्रतिमा की वैयावच्च (रक्षा) करना कर्मनिर्जरा का हेतु कहा है। ___(४१) श्री प्रज्ञापनासूत्र में 'ठवणासच्च' यानी 'स्थापना सत्य' कहा है।
(४२) श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र में चन्द्र के विमान में
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१२८