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में ज्ञान की स्थापना के रूप में "नमो बंभीलिवीए" तथा "नमो सुयस्स" लिखकर श्रुतकेवली श्री सुधर्मास्वामी गणधर भगवन्त ने ब्राह्मी लिपि को और श्रुतज्ञान को नमस्कार किया है।
(१३) श्री ठाणांगसूत्र में चार और दस सत्यों का कथन किया है तथा इसमें स्थापना को भी सत्य रूप में माना गया है।
(१४) श्री अनुयोगद्वारसूत्र में विश्व के प्रत्येक पदार्थ के कम से कम नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार. निक्षेप करने की अनुमति-प्राज्ञा दी गई है। जैसे
"नाम जिणा जिरणनामा,
ठवरणजिरणा पुरण जिरिंगद-पडिमायो । दव्वजिणा जिगजीवा,
भावजिणा समवसरणत्था ॥" अर्थात्-जिनेश्वर भगवान का नाम-'प्रभु महावीर' यह नामजिन है । 'प्रभु महावीर की मूत्ति-प्रतिमा रूप में स्थापना' यह स्थापना जिन है। प्रभु महावीर का जीव यह द्रव्यजिन है तथा समवसरण में स्थित यह भावजिन है। श्री आवश्यकसूत्र में
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१२०