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(५७) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा श्रेष्ठ ध्यान के प्रसाद से ज्ञानरूपी देदीप्यमान प्रभा-तेज को बताती है ।
(५८) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा भावपूर्वक दर्शन-पूजन करने वाली भव्यात्माओं की दुर्गति का विनाश करती है।
(५६) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा भावपूर्वक दर्शन-पूजन करने वाली भव्यात्माओं को पुण्य का संचयसंग्रह कराती है।
(६०) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा भावपूर्वक दर्शन-पूजन करने वाले भव्यजीवों की लक्ष्मी को बढ़ाती है।
(६१) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा भावयुक्त दर्शन-पूजन करने वाले भव्यप्राणियों की नीरोगता को पुष्ट करती है।
(६२) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा भावसहित दर्शन-पूजन करनेवाले भव्यजीवों के सौभाग्य को जन्म देती है।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-८५