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भर्यो भाग लेनारा बने गृहस्थोनी बांहेधरी नीचे आपणी भविष्यनी कॉन्फरन्सो सारी फतेहमंद नीवडे एवी आपणा सर्वेनी खरा अंतःकरणनी इच्छा छे.
हालना वीसमी सदीना विशाळ सुधाराना समयमां अनेक प्रकारना सुधारा थता जाय छे, तेनो लाभ जन मंडळ ले छे तेनुं मान आपणी मायाळु अने बळवान ब्रीटीश सरकारने घटे छे. आप साहेबना जाण्यामां छे के हालना समयमां घणे स्थळे महान् सभाओ मळे छे तेमां विविध विषयो उपर विद्वानो विवेचन करे छे, अने ते प्रत्ये मत लेतां विशेष मते ठरावो पसार थाय छे ते ठरावो संघना लाभना अने हितना अर्थे करायछ तेवा ठरावो करी तेओ बेशी रहेता नथी पण तेनो अमल करवाने बनतो प्रयास करे छे. ते वडे भविष्यना सुखनो संगीन पायो रचाय छे, ते वडे परम सुखनु साधन समजाय छे, घणी कोमो आवी रीते एकत्र थई पोतानुं हित जाळववानो प्रयास करवानो दावो धरावे छे; तेवाज व्यवहारे जैन कोमे स्वधर्मी बंधुओना हित माटे कंईपण योजनाओ करवी जोइए, एम मानीने पण आ मेळावडो अत्रे भरवानो विचार राख्यो छे.
बंधुओ, आ प्रसंगे आपणे घj घणुं विचारवानुं छे; ते अगत्यनी बाबतो उपर हवे टुंकमां इसारो करवानी आप समक्ष रजा लडं छु.
कॉन्फरन्स अथवा महान् सभानो हेतु एक संप थवानो छे. आपणे एक संप थई रणसंग्राममां जइ युद्ध करवानुं नथी. आपणे संप करीने कांई राज्य लेवू नथी पण एक दीलथी संप करीने आपणुं अने आपणा जैन भाई ओनुं भलं करवानो छे; पवित्र जैन धर्मनी उन्नति करवानो छे; ज्ञानभंडार तथा तीर्थोनुं रक्षण करवानो छे. धर्मना पवित्र नामने आपणा सद्वर्तनधी दीपाववानो छे; टुंकमां जेथी आपणु आ भव तथा परभवन हित थाय, जेथी आपणने मळेला अमुल्य मनुष्य देहर्नु सार्थक थाय तेवी योजना रची तेने अमलमां लाववानो छे. संप वस्तु घणी बळवान छे ते वडे मनुष्यो उत्तम प्रकारनां कार्यो करी शक्या छे; ते ऐतिहासिक प्रमाणसिद्ध वात छे, जे आप पण कबुल करशो के संपथी धारेला कार्यनो सर्वथा जय थाय छे माटे मारा बंधुओ, आपणे संप साथे जोडाई तेने वळगी रही चालीशं तो आपणां धारेलां कार्यो फतेहमंद थशे, अने तेथी आपणने तथा आपगी हवे पछीनी प्रजाने मोटो लाभ थशे.
श्री वीरपरयात्याना शासनमां पांचमा गणधर सुधर्मा स्वामीनुं आ शासन वर्ते छे. तेमनी परंपरामां घणा आचार्यो थया छे, तेमां श्री भद्रवाह स्वामीजी जेओ सिद्धांतोउपर नियुक्तिना कर्ता छे, उमवाराती वाचकजी जेओ तत्त्वार्थ विगेरे ग्रंथोना कर्ता छ, श्री विक्रमादित्यना वखतमां श्री समितितकादि ग्रंथना कर्ता श्री सिद्धमेन दिवाकर सरि थयेला छ, श्री हरिभद्र सुरिजी जेओ चौदसो चुंमाळीस ग्रंथोना कर्ता छ, तथा श्री हेमचंद्राचार्यजी, श्री हीरविजय सुरि, उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी विगेरेए अनेक ग्रंथोनी रचना करी छे, जे हाल मोजुद छ,-एकला हेमचंद्राचार्यजीए त्रण करोड श्लोकनी रचना करी छे. जैन शासनमा व्याकरण, कोश, काव्य, छंद, अलंकार, नीति, न्याय, निमित्त अने वैदक उपर उंचा प्रकारना ग्रंथो लखाएला छे. तेवा ग्रंथोनुं अध्ययन थ, तो रह्यं, पण तेओन दर्शन पण घणुं मुइकेल थई पडयुं छे ए घणीज अफसोसनी वात छे. आचार्योए पडतो काळ जोइने केटलेक स्थानके मोटा भंडारो स्थापी सर्व ग्रंथोनी शुद्ध प्रत्तोने ताडपत्र
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