________________
( ६४ )
इंग्लंडरा राजकवि ( Poet Laureate ) लॉर्ड टेनीसन् जिणनें 'जमानारी मंद पवनयुक्त निरोगी लढाई ( Healthy breezy battle of life ) केवे हे उणमांय जीत और जन मिळणारो हे. मिनखने छाजे, सोभे इस्त्रेकी हरएक बात करणारी हिम्मत जिणमुं आवे ऊईज शिक्षण टकामें केणो हुवे तो आपणे जातरा चोधरी, खरा आगेवान ओर मार्गदर्शक हुणारी लायकी जिणसं आवे ऊईज शिक्षण-ऊईज भिणी जणो. आपणा जातभायाकनामु थाथी कारत और शाबासकी मिळावणेरो कोड तथा हूंसआ साचा शिक्षणसुं जाती रेसी. ____लॉर्ड बेकनसाहेब केवे हे के, ज्ञान आ एक सक्ति है; ( Knowledge is power); ओर ग्यान आ सक्ति क्यू हे के ग्यानसुं ग्यानवाळो धणी दुनियामांय मारग बतावे ओर हुकमत चलावे. जठे ग्यानवाळो धणी आपरा पेटपुरतोईज विचार करे, जठे वो आपनेईज फगत आपरा बिचाररो मध्यबिंदु (centre) माने, उठे ग्यानरी सक्ति कमकम हुय बोकरे. कारण पशुपंखीमांय ओर इणारेमांय पीछे कुछ भेद वे नहीं. पशुपंखी पिय आपरो पेट किने भरणो ओर आपरो सुख किणमांय हे आ बात जाण लेवे. आदमीमांय ओर पशुमांय कांई भेद हे के, आदमी आपरा बुद्धिसुं ओर गुणांसुं दूजाने आपरोबिचे वत्तो सुखी करे, मानवी जातिरो ओर बिशंसकरने आपरा न्यातरी उन्नति कर सके. शेक्सपियर कवि पूछे हे के, - जिण आदमीरो मुख्य काम खाणो ओर मुवणो इत्रोईज हे ऊ आदमी केणो कांई ?' (What is man, if his chief work and market of his time be but to feed and sleep.) ज्या सिरदारांने आपरा पेटरा बारे कुछ निजर आवे नहीं वांने श्रीतीर्थकरांका चरित्र बांचणेसुं मालम हुसी के ओर इतिहासरा साधनसु पिण आ बात साबीत हे के मतलबी ओर फगत " हाय पैसो हाय पैसो" करणावाळा लोकांमुं दुनयारो फायदो ऊठणो मुस्कल है. "झे कांई खावांला, कांई पीवाला, कांई ओढांला ओ बिचार थे मन्नमांय मत लावो" ओ अमोलख उपदेस भिडक्योडा आदमीरो नहीं हे पिण एक धर्मसंस्थापकरो हे, मुं ध्यानमें लेने हिवडामांय राखणलायक हे. (Take no thought, saying, what shall we eat? or what shall we drink? or wherewithal shall we be clothed?) आ बात तो सही हे के जिकां आपरो बिचार थोडो कीनो पिण आपणा जातभायांरो जादा कीनो ओर आहा ! आपरा देसवास्ते जीवरी पण पर्वा राखी नहीं वासुंईज देसरी भरभराट तथा चळचळाट हुई है. तो पछे इसा मोटा लोकांरा उदाहरण आपणा टाबरांरी-आवती आगली पीढीरा सिरदारांरी-मालकांरी उमेद, उमंग तथा उत्साह बधावेला नहीं कांई ? उणारे आत्मामें निरमळ जोत लख लख जागसी नहीं कांई ? ओ जमानो, ओ संसार कर्तव्य कमरूप हे. ओ भव घणो दोहिलो मिळ्यो हे. एक कवि केवे हे के:
“I slept and dreamt that life was beautyI woke and found that life was duty."
साकी छंद(भावार्थ) स्वकृत. मुतो हुतो में सुपनो देव्यो, 'ओ भव घणो रसीलो'। जामो हुयने जाण्या ो के, 'ओ भव कर्तबलीलो'॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com