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( १७ )
मुजब आदमरो स्वभाव, चलण ओर सुख समाजरा ( न्यातरा ) बंधन और रचनाऊपर जिस्त्रे टेंको देने रह्या हे उत्रे धर्मरा मतउपर पिण टेंको देने रह्या है. राजारो राज जठे हे अगर सरकार जठे हे ओर सरकाररी जरुरी जठे हे उठे हरएक आदमीरी फरज है के प्रजाधर्ममें गाढो "रेणो, ओर सिरकार अम्मलदारी न्यायसुं ओर रीतसुं कर रह्यो हे के नहीं सुं ध्यान देने देखो. न्यातरी अगर समाजरी चायना जठांतांई हे उठांतांई न्यातरा पंचारी फरज हे के न्यातरा बरताव, रीतांभातां तथा रहारसम इस्त्राजेरा हे के नहीं सुं परखणा चाइजे के जिणसुं नियत ओर हिम्मत बधे. जठांतांई अपां धर्मने श्रेष्ठ मान रह्यां हां उठांतांई न्यातमांय सिद्धांतरा बचन लीज रह्या हे के नहीं सुं देखणारी हरएक आदमीरी फरज है. ओछामें केणो हुवे तो राज, न्यातरा रहारसम और धर्मउपरसुं आदमीरी फरज है. ओछामें केणो हुवे तो राज, न्यातरा रहारसम ओर धर्मऊपरसुं आदमीरी अच्छीबुराई मालम हुवे हे. आदमी सुखी हुणासारुं गज, न्यातरी रीतांभातां और धर्म ए तिनोई उत्कृष्टा, उमदा और चोखा चाइचे. एक अस्सल ओर दूजो कमसल काम आवे नहीं .
इशी देखो सा के सरकार थांनें बहोत उमदा तथा उत्कृष्टा राजरा हक दीना पिण तुमारे न्यातरी (समाजरी) रीतांभातां ओर रहारमम कमसल ओर नागाईरी हुवे तो वे हक कांई कामरा ? एक अंग्रेज केवे हे के “नमुनारो घर रेवणसारं दीनासुं आदमी नमुनाबाज हुवेला नहीं. घर ऊंचो हे तो आदमीने पिण ऊंचो करणो जोग हे; नहीं तो आदमी घर ने आपरे बराबर ढूकतो नीचे लावसी. ( You cannot make a model man by put ting him in a model house. You have got to elevate the man to the house or he will bring the house down to his level.) केसरबिलास पुस्तकरा कर्ता केवे हे के “दुनयामांहे कांई हो रह्यो छे, किशी रोशनी चमक रही छे, दिन दि दुनयाकी कांई उलटपालट हो रही छे, कांई फेरफार हो रह्या छे, जमानाको हाल, परसंग, ओर बरताव किणतऱ्हे छे सूं कोईने मालम नहीं." वेईज ओर कांई केवे हे सुं सुणो:
दोहा.
दिन दिन अपणा देसने, लावो बढपण मांय ।
कुळाचार कुळ रीतसुं, करो प्रभु मन लाय ॥ जीम्या बामण मोकळा, दिखणा दी भरपूर । काम न आयो पुन्न ओ, डूब्या अधबिच पूर ॥ ओसर मोसर व्यवमें, फोगट धनको नास । करो करावो कायने, संचय राखो पास ॥
कठेई शेवगांने पांचसो एक रुपया त्यागरा तो कठेई एक हजार एक. एक जिणारे आठे पांच पकानरो जिमण तो दूजारे घेत्ररफिणी सिवायमें. कोई ठिकाणे एकसो एक रुप्यासुं पगे लगाई तो कोई ठिकाणें तीनसो एक रुप्यासुं ! “ रात दिन लोहीको पाणी करने कमावण सुं इण बेहुदी रीतांमांहे गमात्रणो. " कोई आदमी समावे जरा आपणांमांय लुगायां पल्ला लेने आ रीत आपणा धर्मविरुद्ध हे तिसुं साफ मूर्खाईरी है. न्यातरी नागी ओर ओछी रीतांभातां बदले जादा केने आपरो अमोल बखत म्हे लेवूं नहीं.
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