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( ७२ ) अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जन शलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ २ ॥ प्रमुख साहिब! डेलीगेटो! तथा अन्य जैन बन्धुओ! यह जो धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षाके फैलानेका ठराव यह कॉन्फरन्स करना चाहती है सो बहुत ठीक है; ठीकहि नहीं बल्कि निहायत जरूरी है. क्योंकि यह एक एसी वस्तु है कि जिसके जरियेसे इस संसार समुद्रसे पार उतर कर मोक्षको प्राप्त हो सकते हैं. शास्त्रकारका भी फरमाना है “ पढमं नाणं तउ दया" यानि पहले ज्ञान तो पीछे दया. मतलब कि पहले धर्मके स्वरुपको समझेगा तो धर्म करसकेगा और दयाही जैन धर्ममें मुख्य मानी गई है, इस लिये धार्मिक शिक्षाकी बहुत जरुरत है.
धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षाके बहुतसे फायदे अभी कइ प्रिय जैन बन्धुओंने आपके रुबरु बयान कर दिये हैं. अब धार्मिक शिक्षाके अभावसे जो कुछ हालत हमारी जैनकौमकी हो गइ है, वह मैं अपनी तुच्छ बुद्धिके अनुसार आपको दिखलाता हुं.
प्रिय जैन बन्धुओ! एक वह समय था कि यह जैनमत पूरी तरक्की पर था. इस जैनमतमें एसे एसे विद्वान पुरुष मोजूद थे, जिनकी धार्मिक शिक्षा निहायत उंचे दर्जेकी थी जिन्होंने अपनी विद्याके बलसे बडे बडे राजामहाराजाओंको वश किया और जैनमतकी पूरी परी तरक्की कर दिखलाई. जब हम प्राचीन जैन मन्दिरों और जैन भंडारोंको नजर गौरसे देखते हैं तो हमें अपने बुजुरगोंकी तरक्की मूर्तिमान होकर सामने दिखलाइ देती है. जरा श्री आबूजीके. मन्दिरोंकीऔर ध्यान दीजे कि जिनकी तारीफमें यूरोपियन विद्वान भी कहते हैं कि आबूजीके मन्दिरकी बराबर खूबसूरत इमारत तमाम दुनियामें किसीजगह नहींहै. अगर आप आंख मीटकर पीछले जमानेकी तरफ जरासा ध्यान दोगे तो आपको ऐसे ऐसे विद्वान पुरुष नजर पडेंगे जैसे श्री हेमचन्द्राचार्यजी महाराज जिन्होंने संस्कृत प्राकृतमें व्याकरण, न्याय, छंद, तर्क, योग आदिके सैंकडों शास्त्र रच दिये, जिनसे हजारों मनुष्य लाभ उठाते हैं और जिन्होंने अपनी विद्वताके बलसे अठारा देशोंके राजा कुमारपालको वश करके जैनमतकी बडी भारी तरक्की की और पाटनमें पुस्तकोंका बडा भारी भंडार कायम करवाया. यह वोहि हेमचंद्राचार्य है कि जिनकी तारीफ करते हुए यूरोपियन स्कॉलर डॉकटर पीटरसन साहब फरमाते हैं कि श्री हेमचचंद्राचार्यजीकी विद्वताकी स्तुति जबानस नहिं हो सकती. जिसे उनकी विद्वताका कुछक अंदाजा करना हो तो उनका रचा योगशास्त्र पढ देखो. इसी तरहसे श्री हीरविजयजी और उनके शिष्य श्री शान्तिसागर उपाध्यायजीने अपनी विद्या के बलसे मुसलमान बादशाह अकबर आदिको वश करके श्री सिद्धाचलजी आदि जैन तीर्थोपर जीव दयाका प्रचार कराया. यह मैने पिछले जमानेका कुछ थोडासा हाल आपके सामने बयान किया, जब कि इस जैनकोममें विद्याका बडा प्रचार था और इस जैनकौममें एसे एसे वीर नररत्न विद्वान पुरुष थे जिन्होंने अपनी विद्याके बलसे राजाओंको वश करके बडी भारी जैनमतकी तरक्की की. अब वर्तमान कालकी तर्फ ख्याल कीजिये कि एक सामान्य मनुष्यको भी जैनी नहीं बना सक्ते, इतनाहि नहिं वल्कि खुद जैनियोंकोहि जैनमतमें कायम रखना मुश्किल होगया, क्योंकि धार्मिक शिक्षाके अभावसे लोगोंको जैनमतकी पूरी पूरी खबर नहिं पडती. अविद्याके प्रभावसे जो
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