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(१६५) पुरुषो एक बीजाने साह्य आपवानो, स्त्रीओने अर्धागीपद प्राप्त थवानो, जे पवित्र मानेलो करार था एकमेकनुं व्रत पाळवानो जे नेम ते कोनी साखे, तो ए ब्रह्मा विष्णु अग्नि द्विज आदिना साखे, कारण जे ग्रंथप्रमाणे हाल विवाहक्रिया करवामां आवे छे, ते मुक्तावळी ग्रंथमां सप्तपदी वेळाए नीचे कहेवा मुजब मंत्र उचारवामां आवे छे:
इहार्थे साक्षिणो विष्णुरग्निरीशोद्विजस्तथा ।
उभयोमीती संभूतो कन्या सप्तपदं ब्रवीतः॥ जुओ! आ मंत्रमां जीनेश्वरना नामनो किंचित पण उल्लेख छ, के जेना शासनमा रहेg, जैना परम पवित्र नामथी पापर्नु क्षालन करवू, एवा परोपकारी अरिहंतना नामनो सुद्धा आ मंगळिक मानेला विवाहविधिमां उच्चार पण न करवो, ए केवी खेदकारक अने आपणी अज्ञानतानी वात छे? लग्न विधिमां वर अने वधू वच्चे एक बीजा साथे नीतिपूर्वक चालवाना पवित्र करार करवामां आवेछे, तेमां वधू वरथी करार करे छे के:
___ यज्ञादि धर्मकार्येषु भविष्यामि सहायिनी । एटले आ मंत्रमा वधु वरने कहे छे, के यज्ञादि कामोमां हुं तमोने सहाय करीश. सद्गृहस्थो, विचार करो के आपणे तो अहिंसावत पाळवावाळा, अने यज्ञयागमां तो हिंसा प्रधान होय छे. अने ते यज्ञ क्रिया करवानो करार करवो एज प्रथम धर्मविरुद्ध आचरण, अने बीजुं ए के जे करार कर्यो ते प्रमाणे न चालवं, एटले यज्ञादि कार्यो न करवां, आवा बेवडा प्रायश्चितमां उतरवु ए सुज्ञजनोने बीलकुल व्याजबी नथी.
___परस्पर विरोधी बाबत. एटले एक धर्ममां जन्म, सर्व आयुष्य, तथा धर्म कार्यो तेज धर्म मुजब, अने फक्त व्यवहारिक क्रियाओ बीजा धर्मशास्त्र प्रमाणे, आवो परस्पर विरोध क्याही पण जोवामां आववानो नहीं. ते आज दिन सुधी चालवानुं कारण आपणी गतानुगति के आपणुं सैथल्य, आपणी आळस अने आपणी स्वधर्म विषे अनास्ता एज छे. कोई कहेशे के जे रिवाज प्राचीन काळथी चालतो आव्यो छे, तेमां फेरफार करवानु कांईपण प्रयोजन नथी, परंतु ते साहेबो विचार करीने प्राचीन इतिहास तरफ अवलोकन करशे तो जणाई आवशे के, पुर्वकाळमां व्यवहारिक क्रियाओ तमाम जैनशास्त्र मुजब चालती हती. ते वेळाए जैन ब्राह्मणोनी संस्थाओ हती, परंतु चर्म तीर्थकर महावीरस्वामीना निर्वाण पछी केटलाक दिवस बाद बौद्ध अने वैदिक धर्मना विशेष प्रसार तथा गीतार्थ मुनीओनी आणसने लीवे, जैन धर्मपर संकट उत्पन्न थवाथी घणीएक बाबतोमा फेरफार थई गयो; अने ते लीये अन्यमतीओनो आपणामां प्रवेश थयो अने ते लीचे आवी स्थिति प्राप्त थई. मध्यंतरे कळीकाळ सर्वज्ञ श्री हेमाचार्ये धर्म उद्धार करीने, जैन जातिन महाकार्य कर्य अने जैनधर्मनी विजय पताका परमहीत कुमारपाळ राजाए फरकावी. शांतता अने स्वतंत्रता धर्मसंबंधी बाबतोनी छुट छे, रखे टेलीग्राफ आदि उत्तम सगवडो छे, अने प्रत्येक कोम पोतपोताना धार्मिक तथा सामाजिक सुधारा तरफ दोरवी रही छे, एवा वखते आपणे पण आपणी सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति सुधारवानो प्रयत्न करतो, ए आपणुं मुख्य कर्तव्य छे: अने ते कर्तव्यने वजावी अन्य शास्त्र मुजब थनारी व्यवहारिक क्रिया बंध थई, जैन शास्त्राच
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