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( १३५) थायछे. वळी टाईम्स ऑफ इन्डिया तरफथी जे डीरेक्टरी नोकळे छे, ते दश रुपियानी किंमतवाळी होवा छतां तेनी आ वर्षे बे आवृत्ति थई हती. तेमज बॉम्बे गेझेट ऑफीसमाथी 'मेकलीन्स गाईड टु बॉम्बे' नामनी पांच रुपियानी एक बुक पण दर वर्षे नीकळेछे. तेमज मद्रासमांथी लॉरेन्स एसायलम प्रेसमांथी आवीज एक छ रुपियानी बुक नीकळे छे. वळी कलकत्तामां बैंकर कंपनीमाथी दर वर्षे आखा हिंदुस्ताननी माहिती आपनार रु. २४ नी किम्मतनुं एक पुस्तक नीकळे छे. ज्यारे आम आवी मोटी किम्मतनां वार्षिक पुस्तको खपे छे, तो शुं आपणी डीरेक्टरी नहीं खपे? वळी हिंदुस्तानमांज आवां पोथां नीकळेछे तेम नथी, पण युरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलीआ, चाईना, जापान आदि देशोमां पण आवां पुस्तको नीकळे छे. तेमज धंधावार सेंकडो डीरेक्टरीओ नीकळे छे. त्यारे अफसोसनी बात छे के आपणी कोम तरफथी आवी कोईपण डीरेक्टरी नीकळती नथी. आथी हुं दरखास्त करुं छु केः--
१. आपणा जैन समुदायनी वस्ती केटली छे, २. जीन मंदिरो, ३. जीनप्रतिमा, ४. ज्ञानभंडारो, ५. पाठशाळाओ, ६. पूर्वाचार्योपणीत ग्रंथो, ७. जैन सभा अने मंडळो केटलां छे, ते विगैरे आपणा जैन समुदाय संबंधी उपयोगी बाबतनी पुरती माहिती मेळववा माटे, तेवी विगतोथी भरपुर एक उपयोगी ग्रंथ (डीरेक्टरी) तैयार थवानी आ कॉन्फरन्स बहुज आवश्यकता विचारे छे."
जबलपुरवाळा मी. माणेकचंद कोचर बी. ए.र्नु हिंदी भाषामां भाषण.
श्री वीतरागाय नमः "महरबान सभापति साहिब, प्रिय भाई और बहिनो! आप लोगोंके सन्मुख मेरे मित्र भगुभाई डायरैक्टरीके विषयपर कथन कर चुके हैं. मैं उन्हीके कथनको अनुमोदन कर ज्यादा बलिष्ट करनेके हेतु आप सज्जनोंकी सेवामें कुछ कहूंगा और आशा करता हूं कि आप ध्यानपूर्वक सुनेंगें.
इस मंडपको विद्वानोंसे इस तरह शोभायमान देखके मुझे अतीही आनन्द होता है; और यह जानकर कि मुझे मंडपकी सेवा करनेके लिये अनुमति है, वह आनन्द बहुतही बढ़ गया है. मेरे लिये समय बहुतही थोडा है इस लिये मैं आप लोगोंको इसी आनन्दमें आनन्द करता और कराता छोड़के अपने विषयको लेता हूं.
मेरा ख्याल है कि सभाके कुछ अग्रसर पुरुषोंके छोड़के बहुतसे भाई ऐसे होवेंगे और बहिनोंमें तो उनकी संख्या बहुत होगी, जिनको कि कॉनफरेन्समें आनेके पहिले सिर्फ यही ख्याल होगा कि जो कुछ स्वेताम्बर जैनी हैं वे सब हमारेही जातके है यानि गुजराती गुजरातियोंको और मारवाडी मारवाडियोंको समझते होवेंगे. फिर यदि हम इस बातको छोडके तीर्थस्थान और जैनधर्म पालनेवालोंकी संख्यापर आवे तो मालूम होगा कि इन बातोंके जाननेवाले पुरुष और स्त्रियोंकी संख्या घटती जाती है और यदि पढे लिखोंकी संख्या और उनके उद्योगके विषय पूछे तो जाननेवाले शायद औरही थोडे निकलेंगे और यदि और भी आगे बढे और मन्दिर व पाठशाला व पुस्तकालयके विषय प्रश्न करे तो शायद वह संख्या और भी
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