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न्यून हो जावेगी. और यदि फिर हम धर्मार्थ खातों के विषय पूंछें तो शायद कुछ संख्यामें और भी कमी पडेगी. आजकलकी हमारी दशा देखकर यह बिलकुल ठीक है. क्योंकि हम लोगोंमें नतो विद्याका जादा प्रचार है या न इन बातोंको जाननेका कोई जरिया है. पर मैं समझता हूं कि हम लोगोंको इस विद्याकी घोर निद्रामें सोते बहुत काल व्यतीत हो गया है और अब समय आगया है कि हम उठें. हमारे हिदुस्थान के सबही लोग जाग तो पडे हैं, कईएक हाथ मुंह धो रहे हैं और कई कपडे पाहरके तैयार है और कई सचमुच में खाना भी होगये हैं, तो क्या हम अभी तक सोतेही रहेंगे ? हरगिज नहीं यदि हम सबसे पीछे न रहना चाहे, क्योंकि यह समय ऐसा है कि जो पीछे रहा सो रहा ही, इस लिये भाइयो विद्याका प्रचार करो और एक ग्रंथ ऐसा तयार करो जिसमें कि अपने श्री महावीर वंशके पुरुषों स्त्रियों और बालकोंकी संख्या हो और उनमेंसे जो २ प्रसिद्ध २ सद्गृहस्थ होवें उनके नाम भी. हो. फिर प्रत्येक शहर व जिलेके जैन ग्रहस्थोंकी संख्या और उनमें जो प्रसिद्ध ग्रहस्थ हो उनमेंसे एक, दोके नाम भी रहें. उन शहरोंमें यदि मंदिर व पाठशाला व पुस्तकालय व धर्म फन्ड होवें वे भी दर्ज रहें. और फिर वहांपरके पढोंलिखोंकी संख्या और विद्यार्थियोंकी संख्या देना चाहिये. यदि वहां पर कोई प्रसिद्ध साधु व यति होवें तो उनका नाम भी दर्ज करना ठीक होगा.
इन बातोंके अलावा तीर्थस्थान और उनको जानेका रास्ता और उनका मोका (Situation) भी देना चाहिये.
यदि हो सके तो पुस्तकालयोंमें प्रसिद्ध पुस्तकें होवें, उनके नाम मय उनके रचने वालोंके नामके इस डायरेक्टरी में दर्ज किये जावे.
ये सब कहदेना तो सहज मालुम पडता है, पर यह काम किस तरहसे किया जावें, यह तो सचमुच बडी कठिन बात है.
मेरी समझ में यह बडी आसानी के साथ हो सकता है. यदि हम लोग अपने दिलसे कोशिश करें और अपने २ जिलेको कुल हाल जैसा कि दरकार है सभाको लिख भेजें या एक दूसरी रीतीसे याने सभाकी तरफसे जो सेक्रेटरी, प्राविन्शियल सेक्रेटरी, उनके असिटन्ट और वालन्टीयर सेक्रेटरी बनाये जावे वो लोग इन बातोंको सोधके सभाके मुख्य सेक्रेटरी को भेजें.
अब यह सबतो हुबा पर कोई यह न कह बैठे कि यह सब तकलीफ उठानेका मतलब क्यों ? भाई इसमें बड़ा भारी मतलब है- पहिले तो अन्धकार का परदा दूर होवेगा. हम लोग अपने पूरे कुलको देख सकेंगें और सुधार और बढावकी युक्तियां भी निकाल सकेंगे. यानि हमारी उन्नति बहुत कुछ इसी बात पर मुनहसिर हैं, तो भला कहो यह कितने फायदे की बात है? मैं इसके बहुत से फायदों पर कुछ ज्यादा नहीं कहुंगा पर यह कहदेना बहुतही जरूर है कि इससे हम लोग जो कि हमारी अभी दशा है उसको अछी तरह से जान लेवेंगें और अपने बल, दल, और विद्यारत्नकी जो न्यूनता है उसको दूर करनेकी कोशिसें खोज निकालेंगे और यदि श्री वीतरागकी कृपा होवेगी तो जैनधर्म फिर उसी उच्च श्रेणिको प्राप्त होगा जैसे कि वह एक समयपर था.
भाई और बहिनो ! इतना कहके मैं समाप्त करता हुं और इस विषयको आमलोगों के विचार के लिये छोडताहुं."
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