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(१२२) वर्षे पण आरंभेलां कामो पार पडशे. अत्रे मारा खरा दिलथी प्रार्थना छे के, आ ठरावो पार पाडवा भरतखंडमां अस्त थयेला शूरवीरो अन पुत्रो पाछा नवा उत्पन्न थाओ, अने अत्रे चर्चावेला विषयो पार पडो. आखर मारे कहे, पडे छे के, आ अल्पकाळस्थायी पदार्थोवाळी दुनियामां पैसो मेळवी तेनो उपयोग केवी रीते थाय छे, ते राजा भर्तृहरिना सन्मुख कविए कथलो छे, के जे श्लोक नीचे आपवामा आवे छे:
दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥ अर्थात कहेवानु के. मेळवेला पैसानो उपयोग दान आपवाथी अथवा तो उपभोग भोगक्वाथी थाय छे, छतां बेमांथी एक उपयोगमां नहीं लेनार मनुष्यना पैसानी नाशरुप त्रीजी गति थाय छे. आ संबंधमां दानरुपी जे पैसानी पहेली गति कहेली छे, ते ग्रंथकारे बहज गंभीर ईरादाथी कहेली छे, केमके भोगमां वापरेला पैसाओथी आगामी काळमां कांईपण मुख मळतुं नथी, पण दानमां वापरेला पैसाथीज प्राणीनुं भविष्य सुधरे छे; माटे आ श्लोकमां दानरुपी गतिनो पहेलो व्यास करेलो छे.
___भाईओ अने वहेनो! हुं अत्रे एक धार्मीक उपदेशक तरीके डोळ घाली आपनी समक्ष धर्मोपदेश करतो नी, पण आ कॉन्फरन्सनी एकमेकनी दयादाझ जाणनार तरीके आपनो वखत झीधो छे; वास्ते आवत वर्षे आ ठरावो पाछा कागळोपर न जोतां केटलेक अंशे शरू थइ अमलमां आव्या छे, एवो रिपोर्ट बहार पडशे, एम मने आपनी तरफथी आशा अंने उमेद छे, एम कही आपनी रजा लउंछं. आ अति उपयोगी जोखमदार अने प्रौढ ठराव खरा दिलथी एके अवाजे वधावी लेशो, एवी मारी विनंती छे."
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जामनगरवाळा मि. सांकळचंद नारणजी बी. ए. एल एल. बी.
नुं भाषण. प्रमुख साहेब अने बंधुओ!
हिंदुस्तानना दरेक भागमाथी आपणा धर्मवंधुआ अत्रे एकठा मळेला जोई मने अत्यानंद थाय छे, अने मारं हृदय हर्षथी उभराय छे. जैनलोकांनी ने जैनधर्मनी उन्नतिनो दिवस नजदीक छे. एम आजना मेळावडा उपरथी मने पूर्ण आशा थाय छे. आजे में जे विषय हाथ धर्यो छे ते जेन कॉन्फरन्सनी योजना पार पाडवा बावतनो छे. विषय बहुज महान् छे, अने सेिप्शन कमी-ए जे नव विषय पसंद करेला छे तेनो पण तमा समावेश थाय छे, एटले आ विषयनुं विवेचन करवाने घणो टाईम जोईए; तोपण जेटलो टाईम मने मळेलो छे ते दरमीयान मारी शक्ति प्रमाणे आप साहबो पासे ते विषय मूकीश. प्रथम जैन कॉन्फरन्सनो अ॒ उद्देश छे, ते आपणे रसेप्शन कमीटीना पत्र उपरथी वाकेफ थया छाए, के ते तथा जैनलोकोनी जैनधर्मनी उन्नति अने उद्धार करवानो छे. हवे जैनधर्मनी अने जैनोनी उन्नति केम थाय ए सवाल आपणी सन्मुख उभो छ. उन्नतिनो खरो आधार ऐक्यता छ जनसाधुओ अने श्रावकोमा ऐक्यतानी खास जरूर छ साधुओनी ऐक्यता थया सिवाय
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