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कॉन्फरन्स करनेका यत्न कियाथा और उसकामको पार लगायाथा. तदनंतर इस प्रांत में अहमदाबाद, बंबई, सूरत, भावनगर, आदि नगरोके मुख्य २ लोगोंने अहमदाबादमें एकत्रित होकर दूसरी बार यहां बंबई में कॉन्फरन्स करनेका निश्चय कियाथा. उसी ठहरावके अनुसार हमारे बंबई निवासी जैन भाईयोंने बडे परिश्रम से बहुतसा द्रव्य और समय खर्चकर सब प्रकारकी व्यवस्था की, और हम सब लोगोंको एक बडे समुदायमें यहां एकत्र होनेका अबसर दिया, ऐसी बडी संख्या में आप लोग अपने धर्मकी उन्नति करनेके लिये यहां एकत्र हुए है यह देखकर मुझको अति आनंद होता है. और में आप सब साहेबोकों वन्यबाद देता हूं; मुजको आशा है कि आप सब भाई निरंतर एकमत और एकदिलसें काम करेंगे और परस्परके विचारोंसे जैन धर्मकी जय ध्वजा फरकाते रहेंगे. वीतराग परमात्मा के हम सब सेवक हैं उनकी आज्ञाके अनुसार हमको अपने सब काम करना और उनको सुधारना चाहिये. कोई भी ऐसा कार्य हमको नहीं करना चाहिये जिससे धर्ममें बाधा पडे. हमारी धार्मिक, संसारिक, और औद्योगिक उन्नत्ति के लिये हमको बहुत कार्य करने हैं. जिनमें से इससमय जिन जिनपर विचार करना है उनपर संक्षेपसे, अब विचार करना चाहिये... श्रीवीर परमात्माके शासनमें पांचवें गणधर श्रीसुधर्मास्वामीने प्रभूके मुखसे सुनी हुई आज्ञाओंके अनुसार भव्यजीवोंको जो उपदेश दिया है उस उपदेश रूपी वचनामृतोंका उत्तरोत्तर परंपरासे अध्ययन किया जाताथा. श्रीदेवधार्मिणी क्षमाश्रमणने भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण पीछे ९८० वर्ष अर्थात् विक्रम संवत् ५१० में उनवचनोंको ग्रंथाकार करने का विचार किया. कालानुसार स्मरणशक्ति कम होनेसे परमोपकारी देवार्धिगणि क्षमाश्रमणजीनें शासनकी रक्षा और भव्यजीवों के उपकारके लिये उस समय जो मुनिमंडल विद्यमान था उसको वल्लभीपूर ( वळा, जिल्ला काठीआवाड ) एकत्र कर परमात्मा के वचनामृतरूपी सिद्धांतोकों पुस्तकारूढ किया. इतिहासके अनुसार लगभग आगम एक करोड ग्रंथ लिखे गयेथे इसके उपरांत वीर परमात्माके वचनोंके अनुसार उनके शासन में हुये हुवे चौदह पूर्वधारी श्रीभद्रबाहु स्वामी, श्री उमास्पाती वाचक, श्रीसिद्धसेन दिवाकर, श्री अभयदेवसूरी, श्रीजीनेश्वरसूरी, श्री हरीभद्रसूरी, श्रीजीनभद्रगणी क्षमाश्रमण, श्रीजीन दत्तसूरी, श्रीहेमचंद्राचार्य, श्रीरत्नप्रभासूरी, श्रीमुनि सुंदरसूरी, श्रीहीरविजयसूरी, और श्री यशोविजय उपाध्याय आदि धुरंधर आचार्योंनें अनेक ग्रंथोकी रचना कीहै. ये सब सिद्धांत और ग्रंथोंकी अच्छी तरह रक्षा हो और जनमंडलको उनका निरंतर मिलता रहे इस हेतुसे उस समयके धनवान पुरुषोनें अपनें अनर्गल द्रव्यको व्यय करके अनेक पुस्तक भंडार बन येथें ; कालातिक्रमसै मुसलमानी राज्य होजानेसे कई एक बादशाहोंने आर्याबर्तके धर्मोका नाश करनेकी इच्छा से धर्म के बहुत साधनोंका नाश कर दियाथा.
उस समयके बुद्धिशाली पुरुषों ने मुसलमानोंके आक्रमणोंसे बचे बचाये अमूल्य पुस्तकों की रक्षा करनेके लिये गुप्त भंडार बनाये थे और अब जो २ ग्रंथविद्यमान है उनके लिये हम उन पुरुषों के पूरे पूरे कृतज्ञ हैं. इस समय अंग्रजों के शांतिमय राज्य में सर्व धर्मवालको अपने अपने धर्मसंबंधी विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता मिली हुई है. और अबसे जो हम उनकी रक्षा करनेके लिये उचित प्रयत्न करें तो जो अमूल्य पुस्तक अबतक विद्यमान है उनका लाभ हमारी भविष्यत् समाजको मिलना संभव है. ऐसें भंडार, पाटन, जैसलमीर, खंबात आदि स्थानोंमे उस समय जहांपर जैनीप्रजा अधिक होने के कारण बनाये गयेथे, वह
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