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( ३२ )
तमां एक नानुं सरखुं दृष्टांत आपनी पासे कही बतावुं हुं, जे ऊपरथी कोनी भूल गणाय तेनो आप साहेबोने ख्याल आवशे.
बधारे
एक भरवाडनी पासे एक वाणीआनो एक रुपीओ लेणो हतो. बहु वखत उघराणी कर्या छतां भरवाड तेनो रुपीओ आपतो नहीं. एक वखत उघराणीए आवतां वाणीआनी नजरे एक बकरीना गळामां बांधेलो चकचकित पथ्थर पडयो. वाणीआए बेचार आनामां जो आ पथ्थर आपे तो ते छोकराने रमवा थशे, अथवा तेनुं तोलुं थशे, एम विचारी तेनी मागणी करी. भरवाडे कह्युं के-तमारा रूपीआमां ए पथ्थर लई जाओ पछी मारे कई लवं देवु नहीं.
वाणीआए पहेलां तो जीकर करी पण पछी जाण्युं, के अंते ज्यारे आ भरवाड कांई आपतोज नथी त्यारे जे मळ्युं ते खरूं एम धारी, पोताना रूपीआना बदलामां पेलो पथ्थर ते लई आव्यो. पछी दुकाने आवीने विचार्य के आ पथ्थर तोलदार छे, तेथी छोकराने रमतां बागी जशे माटे तेनुं तोलुं करवुं तेज ठीक छे. एम विचारी पोतानां लोढानां तोला साथे त्राज चांमां नांखी सरखाववा लाग्यो. तेवामां एक झवेरी त्यांथी नीकळ्यो, तेणे पेलो पथ्थर हीरो छे एम जाणी पेला वाणीआने कह्युं के आ पथ्थर वेचवो छे ? वाणीआए हा पाडतां, किंमत पुछी, वाणीआए कं एक रुपीओ बेठो छे, अने तेना बे लेवा छे. पेला झवेरीए कांईक ओछु देवानुं कयुं, एटले वाणीआए कांईक चेतीने कां के हवे तो पांच रूपीआ लेवा छे. पेलो झवेरी बे अढी रूपीआ लेवानुं कहेवा लाग्यो, एवामां कोई बीजो झवेरी नीकळ्यो, तेणे पेलो पथ्थर किंमती जाणी लेवा ईच्छा करी, पण एक घराक ऊपर जवुं ठीक नहीं एम जाणी, सामी दुकाने पेला झवेरीनी जवानी राह जोतो बेठो. प्रथमना झवेरीए विचार्य के जरा आधो जईश तो आ वाणीओ ओछामां आपी देशे, एम धारी जरा आधो गयो एटले बीजो झवेरी, जे सामी दुकाने बेठो हतो तेणे आवी वाणीआने पुछ्युं के शुं छे ? वाणीआए कहां के आ बेचवानो छे. ते पेलो शेठीओ बे अढी रुपीए मागेछे, मारे पांच लेवा है. बीजा झवेरीए तरतज पांच रुपीआ रोकडा आप्या, एटले पेले वाणीए पथरो आपी दीघो, अने ते झवेरी जरा पण त्यां न रोकातां रस्ते पडी गयो पहेलो झवेरी दूर गया छतां वाणीआए न बोलावबाथी पाछो वळ्यो, अने पेलो पथरो त्रण रूपीआ सुधी आपवा कयुं, वाणीओ बोल्यो के तम लीधो, लीधो. एतो पांच रुपीए लई गयो ! झवेरीए पुछयुं के - कोण लई गयो ? वाणीआए कह्युं के तमारो झवेरीज लई गयो. पेला झवेरीए कह्युं के अरे मुर्खा ! लाख रुपी आनो हीरो ते पांच रुपीआमां आपी दीधो. वाणीओ बोल्यो के मुर्ख ते तुं, के मुर्ख हुं ? लाख रुपआनी किंमत हुं तो जाणतो नहोतो. मारे तो एक रुपी आना पांच रुपीया ऊपजवाथी में तो आयो पण तुं लाख रुपीआनी किंमत जाणतो हतो छतां, अढी रुपीया अने पांच रूपीआना वांधामां लाखनो हीरो खोयो, माटे खरेखरो मुर्ख तो तुं छे. आ दृष्टांत ऊपरथी आपणे सार लेवानो ए छे के जेओ ए पुस्तक भंडारोना कबजेदार छे तेओ तो तेनुं मूल्यवानपणुं तेमज उपयोगीपणुं खरी रीते जाणता नथी, तेथी ते तो तेने छुपावे अथवा विनाश पामवा दे, पण आपणे तेनुं मूल्य अने उपयोगीपणुं जाणता छतां जो तेने मेळववा तेमज जाळववा माटे पूरतो प्रयत्न न करीए तो खरेखरा आपणे मुर्ख कहेवाइए. माटे ज्यां ज्यां एवा भंडारो होय त्यां त्यां खास माणसोने मोकलीने अथवा जाते जईने तेना कबजेदारोने समजावी, मोटा भाई करी, आजीजी करी, बगसग लगाडी, कोईपण प्रकारे तेमनां पुस्तको बहार कढाववां, तेनी नोंध करावची, नवो
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