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( ४४ ) अमि. मोतीलाल कशळचंद अमदावाद्वाळानुं भाषण.
"गया प्रश्ननुं विवेचन कर्या पहेलां केटलाक विचार प्रस्तावनारूपे करवानी आवश्यकता छे; जेमके आ संसारमा जन्मीने मनुष्यमात्रनुं कर्तव्य शुं छे; अने ते जोया पछी जैनोनी प्रर्वनी तेमज हालनी स्थितिनुं अवलोकन कर पडशे, अने ते कर्या पछी पोतानो जन्म साफल्य करवा माटे हालनी स्थितीमां कांइ विपरीतपणुं मालुम पडे तो ते दूर करवा माटे शु उपायो योजवानी जरूर छे, ते जाणवा माटे बीजी प्रजाओमां केळवणीनी थती असर तपासी, आपणे तेनुं अनुकरण कवू किंवा बीजो रस्तो लेवो ए तपासवू पडशे.
१. प्रथम प्रश्न एटले संसारमा मनुष्यनुं कर्तव्य ए ऊपर विचार करीए छीए तो मालुम पडे छे, के दरेक मनुष्ये आ संसारमा जन्मीने धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष ए चार साधनो प्राप्त करवां अने तेम न करे तो एक विद्वाने कहेल छे, तेम ते प्राणीनु जीवतर वृथा जाय छे. कहेल छे के:- -
धमार्थकाममोक्षाणाम् यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्यैव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ अर्थात् जे माणसमां धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष ए चार साधन पैकी एक पण न जोवामां आवे, ते माणसनुं जीवq बकरीना गळानां आंचळनी पेठे वृथा छे. उपरना श्लोकमां धर्म ए शब्द पहेलो छे, एटले मनुष्ये प्रथम ते प्राप्त कर्या बाद बीजां साधनो मेळववा प्रयत्न करवो जोईए एम सिद्ध थाय छे; कारणके प्रथम धर्म प्राप्त कर्याथी संसारिक व्यवहारमा मनोवृत्तिओ योग्य रस्ते दोरवी शकाय छे. आम थवाथी नीतिमार्गे जींदगी गुजाराय छे, अने तेथी धर्मवृत्ति विशेष प्रबळ थई अंते छेवटनी गति प्राप्त करी शकाय छे; वळी उपरना अनुक्रम विना अर्थ एटले पेसानो व्यय सारे मार्गे थई शकतो नथी. आगळ उपर जोईशं के धर्म वावतना ज्ञान रहित केवळ संसारिक केळवणी आपवाथी दुनियामां केटलाक अनर्थो जीवामां आवे छे. एकली केळवणी मळवाथी जो के मनुष्य अर्थप्राप्ति, साधन मेळवी शके छे तोपण तेथी आगळनां पुरुषार्थनां साधनो मेळववामां ते पुरुष भाग्यशाळी थतो नथी. वळी केळवणीधी धर्मश्रद्धा ओछी थाय छे ए मत घणी वखते सांभळवामां आवेछे; तेनो अर्थ पण धर्मज्ञान विनानी केळवणीने लागु पडेछे; कारणके बन्ने केळवणी साथे आपवाथी धर्मश्रद्धा ओछी थवाने बदले उलटी वधे छे, अने धर्मना सिद्धांतो सारीरीते समजाई ते श्रद्धा दृढ थाय छे एटलुंज नहीं, पण संसारिक जींदगी पण तेने अनुसरीनेज गळाय छे.
२. हवे जैन समुदायनी पूर्व स्थिति केवी हती ते तपासीए. जैन मत घणोज प्राचीन छ एम आपणे जैनीओज मानीए छीए एम नथी, परंतु पश्चिमनी प्रजाओ तेनी प्राचीनता विषे हालमां वधारे जाणीती थती जाय छे. प्राचीनकाळमां जैनोमां विद्याबळ विशेष हतुं, ते पूर्वना आचार्योए रचेला असंख्य ग्रंथो, तेमां समाएलां तत्वो, विद्याधरोनी अद्भुत शक्तिओनुं वर्णन विगेरे सांभळवाथी आपणने सेहेज जणाई आवे छे. तेओए जे जे कार्यो ते काळमां को छ
* मि. मोतीलाल कशळचंदनो शरदीने लीधे अवाज बराबर न चालवाथी तेओ भाषण करी शक्या न होता, पण आ भाषण उपयोगी होवाथी ते अत्रे दाखल कर्यु छे.
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