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छेटलोज तफावत प्राथमिक मनुष्योनी अक्कल अने हालनी मोटामां मोटी शोध करनारनी शक्तिनी वचमां छे. वणी ते आगळ जतां कहेछे के माणसजातनी ते वखतनी भाषाशक्ति पाणीना प्रवाह जेटली कुदरती हती. ते काळतो मनुष्य बोलतां अचकातो नहीं, तेमज यादशक्ति ताजी करवाने माथु खंजवाळतो नहीं, तेम नवी शोध करवामां हालना जेटलां फांफां मारतो नहीं. एरीस्टोटल जेवो प्रसिद्ध फीलसुफ ते प्राथमिक मनुष्यने मुकाबले कचरो हतो अने ग्रीक लोकोनुं प्रख्यात अने सुशोभित शेहेर आथेन्स स्वर्गनी शोभानो एक अंशपण नहोतो. केळवणीनी शरुआत उपर मुजब जाण्या पछी हवे तेनी
छेटनी नेम शुं होवी जोईए ते तपासीए. केटलाक एम कहेशे के केळवणी पामी छेवटे स्वतंत्र थवं ए अंतनी नेम छे, त्यारे केटलाकनो मत एवो थाय छे के दरेक माणस पोतानी कुदरती शक्तिनो यथेच्छ उपयोग करी शके तेवा थयुं, ए छेत्रट कर्त्तव्य छे; परंतु आपणे मनुष्य कर्त्तव्यनां धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष ए चार साधनो प्रथम वर्णवेलां छे, प्राप्त करवा माटे उपरनी बे शक्तिओनो उपयोग साधनरूप थई पडशे; परंतु तेओ पोते छेवटनुं फळ नथी माटे छेवटनी नेम—
बुद्धि अने नीति संबंधी पूर्णताए पहोंचवानी होवी जोईए, एटले बीजा शब्दोमां ज्ञान अने नीति ए बे छेवटनां फळ होवां जोईए. केळवणीथी मानसिक शक्ति वधारवी अने नीतिना धोरणपरथी नीचे उतरखं एथी जो उन्नति मानीए, तो पुरुषार्थनां चार साधनो तेनाथी प्राप्त थवानां नथी. दुनियानुं अवलोकन करवाथी अने अनुभवथी पण साफ जणाई आवे छे, के एकज माणसमां बुद्धि अने केळवणीनी साथै सत्य ने परोपकारवृत्ति ए बे जोडाएलां क्वचितज जोवामां आवे छे. मूळथीज धर्मवृत्ति विनाना माणसने केळवणी आपवाथी ते माणस ते केळवणीने पोतानी बुरी वृत्तिओ पार पाडवामां हथियार तरीके वापरे छे. जो तेनी नेम स्वार्थी होय तो केळवणीथी तेनी नुकसान करवानी शक्ति वधे छे. सारा केळवा ला वर्गमां आपणने एवा दाखला पण मळी आवे छे के खराब पात्रो केळवणी पामी दगो करवानी शक्ति हद बहारनी प्राप्त करे छे. तेओ पोताना पाडोसीनुं प्रथम बुरुं करे छे, लोकोने ठगे छे अने बजा अज्ञानोने उइकेरी अवळे रस्ते दोरे छे. जो के उपर मुजब केळवणी खराब पात्रमां पडवाथी विरुद्ध परिणाम आवे छे तो पण तेथी एम मानवानुं नथी के केळवणीथी बुद्धि खीलती नथी. विद्यानुं कुदरती वलण मनुष्यने नीतिने रस्ते दोरवानुंज होय छे, जेमके सारी धर्मवृत्तिवाळा छोकराने जेम केळवणी मळती जाय छे, तेम तेम भणीने इंद्रिय सुखोन प्राप्त करवाने बदले उंच वृत्तिओ धारण करतो जाय छे, तेना विचारो दिन दिन प्रत्ये उंचा चडताज जायछे, तेनामां विशेष ज्ञान मेळवानी उत्कंठा प्रबळज रहे छे, तेनी वृत्तिओ हमेशां विद्या अने कळाना क्षेत्रमां जीत मेळववाना यत्नमांज तत्पर रहे छे; आवी रीते आखी कोमनी वृत्तिओ प्रथम धर्मज्ञानथी जागृत थया पछी, केळवणीथी ते कोमनुं परिणाम पण ऊपर मुजबज आवे ते स्वाभाविक छे, आवी रीते आगळ वधेली कोम पोताना बुद्धिबळधी, नवी शोधथी, कारीगरीथी अने वेपारथी जे द्रव्य संपादन करशे ते इंद्रिय सुखो भोगववानां साधनो एकठां करवामां वापरवाने बदले, ज्ञाननो वधारो पोतानी संतति अथवा जातभाई ओमां करवामां वापरे ए परिणाम पण पोतानी मेळेज आवे छे; बीजा शब्दोमां ते कोम परोपकार वृत्तिवाळी थाय छे. त्यारे हवे द्रव्यनो व्यय केवी रीते थशे तेनो आधार, ते संपादन करनारना मनमां अधम
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