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(२१) पुन्यहै. हालमें अनेक स्थानकोंमें पृथ्वी से प्रतिमाजी निकलती है वह अपनी जैनीयोंहीकी स्थापित की हुई है। इसलिये ऐसी जमीनमेसे निकली हुई प्रतिमाओंके हमको तुरत मिलनेकी नामदार गवरमेंटको प्रार्थना करना चाहिये. पूर्व पुरुषोंने हमारे उपकारके लिये अपना असंख्य द्रव्य खर्च करके जो मंदिर बनवाये है और जिनमें अपूर्व प्रतिमाओंकी स्थापना की है, उनकी हमसे यदि रक्षाभी न हो सके तो इसमें हमारी कितनी भूल है यह हमलोगोंको विचारना चाहिये, और आगेके लिये प्रयत्न करना चाहिये; जिस तरहसे जीन प्रतिमा और जीन मंदिरकी रक्षा करना हमको उचित है इसी तरहपर जिस तीर्थभूमिपर शास्त्रविरुद्ध जो जो आशातना होती है उनको निवारण करनेके लिये इस कॉन्फरन्सको प्रयत्न करना चाहिये.
संसारमें अपनी उन्नतिके लिये और व्यवहार चलानेके लिये मनुष्यको विद्या सीखनेकी आवश्यकता है; क्योंकि विद्या विना सन्मार्ग नहीं मिलता. विद्या पढानेके लिये प्रथमसे लेकर उच्च शिक्षातक सरकारकी तरफसे पाठशालायें स्थापित है, परंतु उनमें धार्मिक शिक्षा बिलकुल नहीं दी जाती, जिससे वहांपर पढनेवाले बालक और बालिकायें अपने धर्मके आचारविचारका पूरा पूरा खीयाल नहीं रहता है, इस लिये हमको ऐसा यत्न करना चाहिये जिससे अपनी संतान विद्या सीखनेके साथ २ धर्मानुरागी और व्यवहारोपयोगी बन सकें. श्री चिदानंदजी महाराजने अपने एक पदमें लिखाहै कि मनुष्यजन्म सिद्धांतके कथनानुसार बडा दुर्लभ है, इसलिये मनुष्यदेह प्राप्त करके खानपान भोजनमें तथा व्यवहारिक कार्योंमें प्रवृत्त होनेको सच्चा सुख मानें और धार्मिक आचारविचारसे दूर रहैं, तो कवों ( कागडेको ) उडानेके लिये सच्चे मणिरत्नोंको फैंक देनेवालेकी तरह मनुष्यदेहको व्यर्थ खो देना संभव है. इस कारण मनुष्यके लिये व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त करनेके साथही धार्मिक शिक्षा लेनाभी अति आवश्यक है; इसके लिये प्रथम ही से अपने मनुष्यदेहकी दुर्लभता, उसमें करने योग्य काम, आदरणीय आचरण. और जानने योग्य तत्वोंको बालक तथा बालिकाओंके कोमल हृदयमें अंकित करनेका यत्न करना चाहिये. इन बातोंकी हमारे जैन समाजमें बडी कमी है. हालमें दो तीन जगे ऐसी पाठशाळा सामान्य तौरपर शरू होगई है, परंतु पुरा धर्मज्ञान मिलनेके लिये संगीन पायेपर चलानेकी आवश्यकता है. हालमें बंबईमें बाबू पन्नालालजीने शुभ कार्यके वास्ते आठ लाख रुपये निकाले हैं, उसमेंसें धार्मिक
और व्यवहारिक शिक्षा साथ देनेके लिये एक स्कूल स्थापन करनेको चार लाख रुपये नियत कीये हैं. इस स्कूलकी नीब डालदी गई है इसही तरहपर हरेक बडे २ नगरमें द्रढ पायेपर स्कूल खुलनेकी आवश्यकता है, और उसको चलानेके लिये नई धार्मिक पुस्तकों ( Text Books ) तयार करना चाहिये.
आजकाल दुकाल और महामारीके कारण हमारे बहुतसे जैनभाई दुःखित स्थितिमें आगये हैं, उनको पूरी २ मदद देना हमारा कर्तव्य है. हमारे पास पूर्वके पुण्यसे द्रव्य संपादन करनेकी स्थिति बनी रही हो, अथवा प्रथमसेही द्रव्यसंपत्ति मिली हो, उससे हम तो अपने कुटुंबका भरणपोषण करें और मौज उडावें, और हमारे दुःखीभाई भूखके मारे मरे तो हमसे बढकर निर्दय और कौन हो सकता है. इसलिये इस कामके लिये एक फंड खोल कर ऐसे दुःखी जैन भाईयों और बहनोंको जुदे २ प्रकारसे उनको उद्यममें लगा कर उनकी सहायता कर सकें ऐसा यत्न हमको अवश्य करना चाहिये.
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