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(१८) ऐसेही साधनोंके द्वारा उनका परस्पर मिलाप होना संभव है. सिरफ इतनाही नहीं बलके अपने २ व्यापार उद्योग आदिमें भी परस्परके विचारके वास्ते इसतरह एकत्रित तथा एक मत होनेसे बडा लाभ पहुंच सकता है; जब तक इस देशमें रेल जैसा जुदे २ स्थानोंमें रहनेवाले लोगोंको एकत्र करनेका साधन नहीं था तबतक विद्वानोंकी बुद्धि तथा धनवानोंकी उदारताका परस्पर लाभ लेनेका मौका नहीं आता था; परंतु जब ऐसा साधन हरेक शहरके लोगोंके एकत्र होनेमें सहाईताभूत हुआ है, तब उस साधनसे लाभ उठाकर अपने जैन समुदायको सब प्रकारसे अपनी उन्नति करनेके साधनोंका योग मिलाना इस समयका मुख्य कर्तव्य है.
हमारे जैन समुदायमें धार्मिक उच्चज्ञान प्राप्त करनेवाले मनुष्योंका भाग बहुतही कम है; इसीसे अपने पूर्वाचार्योंने जो २ आज्ञा शास्त्रमें दी है उस माफिक प्रवर्तनेका उद्यमें कम हो जाता है और इससे अकल मंदोंको अफसोस होता है, इसलिये शास्त्रविरुद्ध, लोकविरुद्ध जो २ प्रवत्तियें चलती हों और अज्ञान आदिके कारणसे और योग्य कार्योंके अनादरसे आजकाल नोकारसी विगेरेमें रुपीआ ज्यादा खर्च करते है और जीर्णऊद्धार विगेरे जरूरी कामोंमें कम खर्च करते है ईस कारणसें ईन क्षेत्रोंकी व्यवस्था ठीक नहीं रहेती है. ईसलिये इन सातो क्षेत्रोंमें यथायोग्य द्रव्य खर्च करके ईन सातों क्षेत्रोंको सुधारणेका विचार करना यह कॉन्फरन्सका उद्देश है.
इस कॉन्फरन्समें जुदे २ नगरके संघ समुदायके मुख्य गृहस्थ तथा जुदी २ सभाओंके सभासदोंका मिलाप हुआ है; इससे परस्पर अपने २ विचारोंका प्रकाश करनेसे जो २ लाभ प्राप्त होंगे यदि उनकी तरफ दृष्टि दी जायतो ऐसे २ समुदाय एकत्र हुए बिना वैसे लाभोंका प्राप्त होना ही संभव नहीं है.
___यह कहनेसे आप लोगोंको मालूम होगया होगा कि ऐसे कॉन्फरन्स होनेसे अनेक प्रकारके लाभ हैं. कितनेही लोगोंका ऐसा विचार होगा कि इस रीतसे जुदे २ देशोंके लोगोंको एकत्र कर केवल तीन दिनतक भापण करके जुदे २ विचार प्रकट करनमें एक बडी रकम खर्चनी उचित नहीं है; परंतु ऐसे लोग जब दीर्घ दृष्टिसे विचार करेंगे तो उनको विदित हो जायगा कि प्राचीन काळमें भोजराजादिके राज्यमें ऐसा था कि केवळ एक शिक्षाके वाक्य मात्र के लिये धनाढ्य लोग लाखों रुपये व्यय कर देते थे और लाख २ रुपये देकर एक शिक्षा खरीदतेथे. यह बातें हमको पुरानी पुस्तकोंसे मालूम होती हैं जो इस विषयपर ध्यान देकर देखा जाय तो सब जैन समुदायके मुख्य पुरुषोंके लीये जहांपर ऐसे अनेक शिक्षाप्रद वाक्योंका उपदेश मिले उन महालाभोंको देखते हुए एक छोटी रकम व्यय कर देना किचिंत मात्र हे इतनाही नहीं, बरन जो ऐसा विचार करनेवालोंहीके संसारिक व्यवहारकी ओर देखते है तो स्पष्ट जान पडता है कि वेही जन केवल अपनी अल्पस्थायी कीर्ति
वा मोजशोखके लिये निरर्थक कामामें हजारों लाखों रुपये खर्च डालते हैं. इस लिये ऐसे विचारवालोंकोभी जब इस समुदायमें भाग लेनेवाले मनुष्योंके विचारसे होनेवाले सुधारोंसे लाभ होता दष्टिगत होगा तो वेहि अपने ऐसे विचारोंको बदल देंगे, इसमें कुछ संदेह नहीं है.
इसी हेतु और इन्ही विचारोंसे जैन धर्मके कई मुख्य भाईयोंके मनमें इस कॉन्फरन्सके करनेकी इच्छा हुई है. हमारे प्रसिद्ध नररत्न मि० ढहा ने गतवर्ष फलोदी तीर्थमें प्रथम जैन
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