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प्रमुख साहेब, भाषण. प्रियबंधुओ, प्रतिनिधीओ, मेहरबान साहेबो तथा बहेनो.
श्रीसंघसे अरज यह है कि मुजको इस कॉन्फरन्सका सभापति चुननेनी जो कृपा कीहैं इस लिये में आपका कृतज्ञ हूं. में जानता हूं की मुजसेभी अधिक योग्य पुरुष मौजूद होते हुवे आप साहेबोने एकत्र उत्साहसें मुजको इस पदपर नियुक्त किया, इसलिये आपको वारंवार धन्यवाद देके श्रीसंघकी आज्ञा सिर चडाता हूं.
और इस महत् कार्यकी सफलता प्राप्त करनेके वास्ते श्री गुरुदेव महाराजसे अंतःकरणसे प्रार्थना करता हूं कि कॉन्फरन्सके सब कार्य निर्विघ्नपणे सिद्ध होवें और जीनशासनकी दिनपरदिन अधिक उन्नति होती रहे. और साधर्मी भाईयोमें यह संपकी वेल जो रोपित हुई हे सो प्रफुल्लितासे फैलती रहे. में अपने इस छोटेसे भाषणके आरंभमें परमेष्टिका स्मरण करके मंगलाचरण करता हूं..
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमप्रभुः।
मंगलं स्थूल भद्राद्याः जैन धर्मोस्तु मंगलं ॥ भाईओ! अपना जैन धर्म सनातन, अत्यंत पवित्र और अनादिसे चला आता है. इस भरतक्षेत्रमें हरेक ऊत्सर्पिणी अवसर्पिणीमें चोवीश चोवीश तीर्थकर होते हैं. इस वर्तमान अव. सर्पिणीमें असंख्यात वर्ष पहेले श्रीऋषभदेव भगवान हुये है. उन्होंने सर्व प्रकराके धर्म और व्यवहारादि बताये हैं. तबहीसें बराबर धर्म प्रवृत्ति चली आती है. वर्तमान समयमें चरम तीर्थकर श्री वीर परमात्माका शासन है. वो सर्वज्ञ परमात्मा अज्ञान, मिथ्यात्व, अविरति, राग, द्वेष, काम, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंच्छा, निद्रा, दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय और वीर्यातराय, यह अठराह दोषोसें रहित थे और शुद्ध सच्चिदानंद परमात्म स्वरूप थे.
देवका स्वरूप. जितने प्रकारके दोष मनुष्यप्राणी मात्रमें देखे जाते हैं उनमें से इनमें लेशमात्र भी नहीं था. उन शुद्ध देवमें ज्ञानातिशय, वचनातिशय, पूजातिशय और अपायापगमातिशय आदि चार अतिशय और आठ प्रातिहार्य ये बारह गुण असाधारण रूपसे विद्यमान थे. ज्ञानातिशयके होनेसे वो सकल लोकालोकके जीवाजीवादिक समग्र पदार्थके भूत, भविष्यत् और वर्तमान समयके वाच्य और अवाच्य सब भावोंके वेत्ता थे. वचनातिशयके होनेसे उनकी वाणी स्वश्लाघ्य, परनिंदा, और वाणीकै सर्व दोषोंसे रहित और पैंतीस अतिशयसे युक्त थी इतनाही नहीं, बरन अतिशयके प्रभावसे उनके उपदेश सर्व प्राणी अपनी भाषामें समज लेते थे. पूजातिशयके होनेसे इंद्र नरेंद्र सब उनकी पूजा, सेवा, और भक्ति आदि मानपूर्वक करते थे... अपायापगमातिशयके प्रभावसे वे जहां २ बिहार करतेथे वहां २ की भूमिके आसपास सौ २ योजनतक अतिवृष्टि, अनावृष्टि, रोग, उपद्रव आदिका अभाव होजानेसे सब तरहकी शांति रहतीथी. और अनेक प्रकारके दोषोंका अभाव रहनेसे प्राणीके भाव अपायभी नष्ट होतेथे.. ऐसे सर्वज्ञ और शुद्ध परमात्मा अपने जैन धर्ममें देव स्वरूप माने जाते हैं.
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